________________
( २१ ) ईश्वर को माकार मानकर भी व्यक्तित्व का चोला पहनाने से विचार धारा उद्धांत हो विपथ गमन कर सकती है । ईश्वर रूप से तीनों शक्तियां सर्वव्यापी हैं व निरंतर प्रवाहित होती हैं-सब पदार्थ में सब काल में, अतः यही ईश्वर है एवं सर्वत्र विद्यमान है।
ईश्वर व्यक्ति का विरोध था महावीर के शब्दों में ईश्वर शक्ति या ईश्वर आत्माओं का नहीं, अतः महावीर के सिद्धांत को अनिश्वरवादी कहना भूल व भ्रांतिपूर्ण है।
चेतन को इस तरह अविनश्वर व पृथक २ मानकर सत्य पथ पर चलने की आवश्यकता व तद् हेतु प्रयत्न की अपेक्षा पर जोर दिया गया। एक ईश्वर के भरोसे सब कुछ छोड़ने से अकर्मण्यता ही बढ़ी इस देश में । जहां महावीर ने यही कहा कि पुरुषार्थ की परम आवश्यकता है, किसी के भरोसे छोड़ने से कुछ नहीं होता, अपने आप प्रयत्न करने से आलोक की प्राप्ति सार्थक हो सकती हैअन्यथा नहीं। प्रयत्न करने से ही पूर्वकृत भावों व कार्यों के परिणामों का उच्छेद किया जा सकता है एवं रुचिकर परिस्थितियों व अंधकार अज्ञानता से त्राण पाया जा सकता है । किसी अन्य ईश्वर की कोई शक्ति नहीं कि किसी को बुरे या भले से बचालेयदि ईश्वर व्यक्ति के हाथ में बुरे या भले परिणामों को बदल . सकने की सत्ता दे दी जाय यो उचित अनुचित के नियम का भङ्ग होता है-यह जबाब था महावीर का अकर्मण्य बनाने वाले साकार ईश्वरवादी सिद्धांत के सामने । जब कार्यों का परिणाम अन्य व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर हो तो सामान्य चेतन व्यर्थ को कष्टकारी