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शैव शक्तादि समुदायों में यज्ञादि क्रियाकांड के बहाने पशु आदि प्राणियों की नृशंस हत्या की परिपाटी वेदों की दुहाई. के साथ खूब जोरों से चल पड़ी थी एवं ढोंग व धोखे का बोलबाला था। महावीर ने विरोध किया कि वेदों के कुत्सित अर्थ करने की यह धारणा अयुक्त है तथा प्राणवध की अपेक्षा प्राण रक्षासे धर्म की प्राप्ति होतीहै । अन्य को दुःख देने के पूर्व वैसे ही व्यवहार द्वारा पाये जाने वाले अपने दुख के साथ उसकी तुलना करो यदि दुख अपने को अप्रिय लगता है तो दूसरे को कैसे रुचिकर होगा ? आज तुम्हारी परिस्थितियां अनुकूल हैं, तुम दूसरे को दुख दे सकते हो कल दूसरे की बारी होगी तब तुम ऐसे व्यवहार की वांछा नहीं कर सकोगे। ___ उनका यह अहिंसा उद्घोष गूंज उठा दिग्दिगंत में एवं कांप उठी पाप की काया, लड़खड़ाये उस के पैर.और मेधावियों का समूह टोलियाँ बाँधकर सुनने आया उनका यह प्रवचन । प्रतारणा के स्थान पर क्षुद्रों को भी समृद्धों व उच्चों के समक्ष बैठने का अवसर मिला, मुग्ध हो गये लोग । पर स्वार्थ एवं लिप्सा जिनके जीवन की माला थी वे यों हार मानने वाले न थे। कर्कश शब्दों में महावीर के सिद्धान्तों की आलोचना की गयी, बहाने बना बना दोषारोप किया गया किंतु.सत्य व अंतर त्याग की भावनाओंसे जिसको गढा गया हो वह यों उखड़ कैसे सकता था ? विक्षुब्ध हो स्वार्थी लोग महावीर के अनुयायियों को अनिश्वर वादी, नास्तिक अवेदिक कह कर पुकारने
• Harirau.........
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