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व आवश्यकतानुसार स्वीकार करने की पद्धति बतायी। आधुनिक विज्ञान की अद्भुत सफलताएं जहां हमें आज आश्चर्याभिभूत करती हैं वहां भारतीय ज्ञानकोष के जानकार को
और विशेषकर जैन तत्व विचार-पद्धति से परिचित व्यक्ति को लगता है कि अनेक विषयों में भारतीय ऋषियों द्वारा जाने गये तत्वों का भौतिक संस्करण मात्र है यह आजका पाश्चात्यों का प्रयास । ऐसा कहकर पाश्चात्य उपलब्धियों का परिहास नहीं कर रहा हूँ बल्कि भारतीय तत्वचितकों की अगाध शक्ति का यथास्थान उल्लेख मात्र किया है मैने । जहां यंत्रसंभव प्रयोगों का आविष्कार करने का श्रेय पाश्चात्यों को है वहां तत्व के यथार्थ स्वरूप का सूक्ष्मानुसंधान करने का महत्व भारतीयों को है इसे छिपाया नही जा सकता। आज जितने भी तात्विक वैज्ञानिक सत्यों का आविष्कार संभव हुआ है उन सब के बीज मंत्र भारतीय ज्ञान कोष मे यथास्थान उल्लिखित हैं-यह मुक्त कंठ से सब पाश्चात्यवासी न स्वीकार करेंतो क्या ? कुछ कृतज्ञ वैज्ञानिक यह कहते हुए नहीं लजाते कि अधिकांश पाश्चात्य विज्ञान की प्ररणाएं, संकेत व मंत्र भारतीयों की देन है। ___ हम लोग हमारे ज्ञान को पहुंच को आज समझते नहीं इसीलिये सब कुछ वहां से बह कर आता हुआ दिखाई देता है, कितु तनिक ध्यान देने पर यह स्पष्ट प्रमाणित हो सकता हैं कि बहुत कुछ यहाँ से वहाँ बह कर गया है । उन्होंने ज्ञान की कदर की, उसे अपनाया, प्रयोग किया एवं अब उसको उपयोग के लिये चारों ओर बहा रहें हैं। ।।