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व्यक्तियों का समस्त समुदाय के व्यवहार व विचार पर एक छत्र आधिपत्य, स्वार्थियों के हाथों इस सत्ता का दुरुपयोग, स्ममान्य सी बातों पर भीषण युद्वों का तांडव, तत्व ज्ञान का विलोप, यह थी आज से १५०० से ३००० वर्ष पूर्व की गाथा । यद्यपि ३००० वर्ष पूर्व व्यवहार में सौष्ठत्व विदाई नहीं पा चुका था एवं उस समय भी समृद्धि तथा सुख की शोभा में निखरे हुये भारतीय व्योम के बादल यदाकदा अन्य मानव समूहों पर अपना शांति पीयूष छिटका दिया करते थे किन्तु ज्ञान की गति के रुख को बदलता हुआ देख दूरदर्शी समझ गये थे कि अब समय का प्रवाह कठिन दुरूह घाटियों के बीच से बहेगा एवं आश्चर्य नहीं, सभ्यता शिलाखंडों से टकरा कर विध्वंश हो जाय । अतः अपनी अपनी सूझ के अनुसार सभी ने भारतीय सभ्यता को कठोर बनाने का प्रयत्न किया, किंतु प्रवाह के वेग के अनुरूप शक्ति संचय न हो सका एवं बिखर गयी हमारी सारी पूँजी, हम मार्गभ्रष्ट हुए अंत में पददलित भी। प्राक्तन काल के उन दूरदशियों में महावीर का नाम अग्रगण्यों की गणना में श्रा चुका है।
समाज के लिये नया विधान दिया महावीर ने, तत्वचिंता .. के क्रम को स्थिर किया एवं सत्य के स्वरूप को अधिक स्पष्ट
करने में सफलता प्राप्त की, तुलना व युक्ति की सार्वभौमिक महानता का दिग्दर्शन कराया तथा व्यवहार व निश्चय (स्वभाव) के पारस्परिक संबंध का ध्यान रखते हुये उनको यथा व योग्यता