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(६ ), किस २ कारण से शुम अशुभ अथवा शुद्ध भावों का आगमन होता है इसका विवेचन महावीर के प्रगाढ अन्तर प्रक्षालन का परिणाम है । एक २ भाव को हम आलोचक को दृष्टि से देखें तो हमें सर्वत्र तात्त्विक परिपूर्णता का परिचय प्राप्त होगा, कहीं कोई भी भेद मानों छूटा हुआ नजर नहीं आता। ___ कर्मों का बन्ध वैज्ञानिक है तो उनके उदय की गाथा भी उतनी ही युक्ति पूर्ण व सुन्दर है । सत्ता में क्यों व कैसे कर्म रहते हैं इस विवेचन से हमारी ( मनुष्य मात्र को ) सबसे बड़ी शङ्का का निवारण हो जाता है। मेधावान मानव के सन्मुख सदा सर्वदा यह प्रश्न चक्राकार घूमता रहता है कि एक जीव के भावों में इतनी उलझन है तो समस्त जीवों के अपार भाव समुद्र के झंझावात में क्यों कर परिणामों का निर्णय सर्वथा उपयुक्त व निर्धात हो सकता है ? – इसी का उत्तर देते हुये मानों बन्ध सत्ता व उदय की त्रयी के आधार पर तत्वधारा का श्रोत उस परम मेधावी ने वांग्मय में बहा ही तो दिया। कर्म बन्ध की त्रयी से त्राण पाये बिना स्वातन्त्रय अथवा मुक्ति सम्भव नहीं होती। अतः इस त्रयी के पाश से छूटने के लिये प्रयत्न सुलभ उदीरणा को तत्व में स्थान देकर उन्होंने उन्नति पथ गमन को सुलभ व युक्तयानुसारी बनाया । ___ वासना के स्थिति व स्तर विशेष में उदारणा के आवानुसार अनेक रूप होते हैं, इसका हमे साहित्य से अनुसन्धान प्राप्त हो सकता है । स्थिति व रस बन्ध, प्रकृति व प्रदेश बन्ध आधुनिक