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________________ श्रीआत्मतिलक ग्रंथ सोसायटीकी पुस्तकें. " गृहस्थजीवन" यह पुस्तक मनुष्यको गृहस्थजीवनमें किस तरह जीना चाहिये इस बातका सच्चा उपदेश करती है। सचमुच ही यह अन्य सामाजिक जीवन जीनेकी अद्वितीय कूची है। माता पिताओं द्वारा बच्चों का जीवन निर्माण किस प्रकार किया जाना चाहिये. गृहस्थाश्रममें प्रवेश करनेके लिये उनमें किस प्रकारकी योग्यता आनी चाहिये और योग्यता आयेवाद उनके जीवनका साथी किस तरहका होना चाहिये इत्यादि महत्वपूर्ण विषयों पर पहले ही प्रकरणमें बड़ी योग्य रीतिसे विवेचन किया गया है। अन्य प्रकरणोंमें मनुष्य कुसंगतिके कारण अपने जीवनमें पड़ी हुई खराब आदतोंको किस रीतिसे निकाल कर अच्छी आदतों द्वारा अपनी जिन्दगी सुखी बना सकता है, तथा स्त्रीसंस्कार, सासु और वड़के वीचमें किस तरह मुशान्ति रह सकती है इसके उपाय, विधवाओकी सोचनीय दशा, और मानव जीवनको दिव्यजीवन बनाने वाला चारित्रबल इत्यादि कीमती विषयों पर इस ग्रन्य वडी मार्मिकताले सयुकिक विवेचन किया गया है। यदि सच पूछो तो स्त्री पुरुषोंको अपना कौटुम्बिक जीवन सुधारनेके लिये सच्चे शुभचिन्तक सलाहकारके समान आजतक ऐसी पुस्तक हिन्दीभाषामें हमारे देखनमें ही नहीं आई। आदर्श गृहस्थजीवन बिताने की इच्छा रखनेवाले हरएक स्त्री पुरुषको यह पुस्तक अवश्य पटनी चाहिये । छपाई काम कीमती होने पर भी मूल्य मात्र १). " जैन साहित्यमां विकार थवाथी थयेली हानि" यह सुप्रसिद्ध पंडित वेचरदास जीवराज लिखित वही पुस्तक है कि चार वर्ष पहिले जिसके कारण पुराणप्रिय जैन समाजमें खलबली मच गई थी। इस ग्रंथमे लेखकने इतिहासकी दृष्टिसे और सूत्रसिद्धान्तके प्रमाणोसे महावीर प्रभुके वाद जैन समाजके आचार विचारोंमें, जैन साहित्यमें आज पर्यन्त जिस जिस समय जिस प्रकारका विकार-परिवर्तन हुआ है और उससे जो जैन समाज मार्गच्युत होकर अशास्त्रीय रूढियोंके सांचेमें ढल कर अवनतिको प्राप्त हुआ इत्यादि अनेक महत्वपूर्ण विषय प्रौढ गजराती भाषामें लिखे है। विचारशील नवयुवकों को यह पुस्तक अवश्य पढनी चाहिये. मूल्य-मात्र १) "स्नेहपूर्णा" यह एक हिन्दी भाषाका सामाजिक उपन्यास है, इसके पढनेसे यह अनुभव ज्ञान होता है कि फुसंस्कारोंसे घरमें किस प्रकार अशान्ति और सुसंस्कारोंसे सारे युटुम्बमें मुशान्ति तथा सुखकी भावना निवास करती है ।
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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