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मलजी तत्परिवार भूलचंद सगतमल केसरीमल रिपभदास मांगीदास भगवानदास भीखचंद चिंतामणदास लुणकिरण मनालाल कनैयालाल सपरिवारयुतेन आत्मपरकल्याणार्थ श्रीसम्यक्त्वोद्दीपनार्थे च श्री जेसलमेरुनगरसत्क अमरसागरसमीपवर्तिनि समीचीनाऽऽरामस्थाने श्रीरिषिभदेवजिनमंदिरं नवनि कारापितं तत्र श्रीआदिनाथबिबं प्राचीन बृहत्खरतरगणनाथेन प्रतिष्ठितं तत् श्रीजिनमहेन्द्रसुरि पदपंकजसेविना बृहत्खरतरगणाधीश्वरेण चतुर्विधसंघसहितेन श्रीजिनमुक्तसुरिणां विधिपूर्वमहता महोत्सवेन शोभनलन्ने श्रीमूलनायकचैत्ये स्थापित । पुनः अनेक विधानामंजनशिलाका कारिता। पुनदुतीयभुमिप्रासादे खप्रतिष्ठित श्री पार्श्वनाथबिंब मुलनायकस्थापितं पुनीश विरहमान प्रतिष्ठा कृतं मंदिरस्य दक्षिणपार्श्वे दादासाहिब कुशलसूरि गुरुमूर्ति स्थापनकृता । तथाच जिनदत्तसूरि कुशलसरि चरणपादुका पुनरपि श्रीजिनहर्षसूरि महेन्द्रसूरि चरणपादुका स्थापिता।
भाई सवाईरामजीके धरका आया। रतलामखें चि. सोभागमल चांदमल सौभाग्यमलकी माजी वगेरे आया। उदेपुरखं चि० सिरदारमल तथा इणारी माजी वगेरे आया। ओर पण घणे देशावरांसु संघ आयो। स्वामीवच्छल प्रमुखकरी ३ श्रीसंघकी भक्ति करी। त्या पांच शिष्याने श्रीपूज्यजी महाराजके हांथसें दीक्षा देराइ । दिन १५ तक बढो ठाठ उछव नित्य नवीन पूजा प्रभावना हुई। श्रीदरबार साहिब पधाऱ्या तोफांका फेर हुवा । सेठांके पगसे सोनो वगसीयो । फेर श्रीसंवसमेंत जेसलमेर आया उजमणा प्रमुख कीना । श्रीपूज्यजी महाराजकी पधरावणी २ कीनी जिणमें हजारा रुपीयांको माल असबाब भेट'कानो । उपाध्याय वगेरे ठाया ठावा ठाणानें रोकडा शालजोडी इत्यादि यथायोग्य दीना। उपाध्याय साहिबचंदजी गणि । पं. । प्र.। भेरजी गणि पं. प्र. अमरचंदजी गणि प्रमुख ठाणा ४१ था । ठाणे दीठ रू. १० दश रोकडा थान प्रत्येके दीना। परगच्छीय यतियांको सतकार अछीतरे कानो। श्रीसरकारकी पधरामणी कानी । घोडा लवाजमो नजर कीनो । मुत्सद्दी वगेरे सर्वनें यथायोग्य शिरोपाव दीना ॥
श्रीजिनभद्रसूरि शाखायां पं. प्र. श्रीमयाचंदजी गणि तशिष्य पं. सरूपचैदजी मुनि जेसलमेरु आदेशिना इयं प्रशस्ति रचिता।।
शिलावट विरामके हाथसुं श्रीमंदिरजी वणिया जिणके परिवारने सोनेकी कंठिया त्या कडीकी जोडियां मंदील डुपट्टा थान वगैरे शिरपाव दीना ॥