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सइयो ३१ सो
झोननीक जे सागमें बाफणा गुमानचंद ताके सुन पांच पांडव समान है । संपदान लचल बुद्धिमें प्रबल रावराणाही माने जाकी कान है । देवगुरु धर्मरागी पुन्यवंत वडभागी जगत सहु वान मानें प्रमान हे । देशहु विदेशनांह करित प्रकाश कीयों सेठ सठ हे
कविकर्त बखान ॥ १ ॥
दुहाअकारते हन्तुंवे जेटमास सुदि दोष ।
लेख लिल्यो अति चंपतुं भविवण वांचो जोय ॥ १ ॥ सकल सुरि शिर नुगटमणि श्रीजिनहे सुरिंद | चरणकमल तिनके सदा सेवे भिदियण वृंद ॥ २ ॥ कीनो आमहयत्री जेसलमेर चोमास । तंत्र सहु भक्ति करे चडते चित्ता ॥ ३ ॥ ताकी बाज्ञा पाय करि धरि दिलमें नाणंद ।
ज्युं थी युं रचना रची नुनि केवरीचंद ॥ ४ ॥
मुलो जो परमाद अक्षर घटही नाव । लिखत खोट भाइ हुने, सो सनीयो अपराध ॥ ५ ॥
॥ इति प्रशस्ति सम्पूर्णम् ॥
इत संघके निकालनेवा ेके वंशज आज भी मौजूद हैं और नालवा रतलान वगैरह शहरोंनें उनकी बडी बडी दुकानें चलती हैं । इस सबके जैवा बडा संघ, इसने बाद जैन समाजमेंसे फिर कोई नहीं निकला और शायद अत्र कोई निकाले वैसी आशा भी नहीं है ।
इस कुटुंब संवत् १९२८ में, जेसलमेरने जो एक वडा भारी प्रतिष्ठामहोत्सव दिया था उसका लेख भी उपर्युक्त लेखवाले नंदीरमें लगा हुआ है } वह लेख कुछ संस्कृत और कुछ मारवाडी भाषाने हैं । संग्रहकी दृष्टिले इत लेखको भी यहांपर प्रकट कर दिया जाता है ।
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त्वत्ति श्रीविक्रमादित्वराज्यात् सम्वत् १९२८ शालीवाहनकृत शके १७९३ प्रवर्तमाने नासोत्तमनाते धवलपक्षे त्रयोदश्यां तियों गुरुवासरे महाराजाधिराज महारावलजी श्री श्री १००८ श्री वैरीशालजी विजयराज्ये श्रमितलनेस्वास्तव्य भोरवंशे बाफना गोत्रीय संघवी के गुमानचंदजी तत्पुत्र प्रतापचंद्रजी तलुत्र हिंमतरामजी नेमलजी नयललजी सागरनलर्जी उमेद