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(१२६) जेसलमेरके चाफणाओके संघका वर्णन तीर्थयात्राके निमित्त निकलनेवाले संघोंमेंसे एक बड़ा भारी अन्तिम संघ सम्वत् १८९१ में मारवाडके 'जेसलमेर नगरमें रहनेवाले पटवा नामसे प्रसिद्ध-बाफणा-कुटुंबवाले ओसवालोंने निकाला था । इस संघका वर्णन, उसी कुटुंचका बनाया हुआ, जेसलमेरके पास अमरसागर नामक स्थानमें जो जैन मंदिर है उसमें एक शिला पर उसी समयका लिखा हुआ है। यह शिलालेख मारवाडी भाषामें और देवनागरी लिपिमें लिखा गया है। नीचे इस लेखकी ज्यों कि त्यों नकल दी जाती है । इस लेख की एक कापी प्रवर्तक श्रीकान्तिविजयजी महाराज शास्त्रसंग्रहमसे मिली है; जो उन्होंने किसी मारवाडी लहियेके पास लिखवाई है और दूसरी नकल, बडौदाके राजकीय पुस्तकालयके संस्कृत विभागके सद्गत अध्यक्ष श्रीयुत चिमनलाल डाह्याभाई दलाल एम्. ए. ने जेसलमेरके किसी यतिके पाससे लिख मंगवाई थी। वह मुनिराज श्री जिनविजयजीने जैन साहित्य संशोधक के भाग १ अंक २ अप्रगट की है.
॥ओं नमः ॥
। दुहा। रिपभादिक चउवीस जिन पुण्डरीक गणधार । मन वच काया एक कर प्रणमु वारंवार ॥१ विधन हरण संपतिकरण श्रीजिनदत्तसुरिंद। कुशल करण कुशलेश गुरु वन्दु खरतर इंद ॥२ जाके नाम प्रभावतै प्रगटे जय २ कार ।
सानिधकारी परम गुरु सदा रहो निराधार ॥३ सम्बत् १८९१ रा. मिति आषाढ सुदि ५ दिने श्रीजेसलमेरु नगरे महाराजाधिराज महारावलजी श्री १०८ श्रीगजसिंघजी राणावत श्रीरूपजी वापजी विजयराज्ये बृहत्खरतर भट्टारकराच्छे जंगमयुगप्रधान भधारक श्रीजिनहर्षसरिभिः पष्टप्रभाकर जं । यु । भ । श्री १०८ श्री जिनमहेन्द्रसरि उपदेशात् श्रीबाफणागोने देवराजजी तत्पुत्र गुमानचंदजी-भार्या जेतां । तत्पुत्र ५-(१) बहादरमलजी-भार्या चतुरां । (२) सवाईरामजी-भार्या जीवां। (३) मगनीरामजी-भार्या परतापां । (४) जोरावरमल्लजी-भार्या चोथां । (५) प्रतापचंदजी-भार्या मानां । एवं बहादरमल्लजी तत्पुत्र (१) दानमालजी (२)