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१३. विक्रम सम्बत् १३१४ (एक हजार तीनसो चवदह ) में श्रीसिंधका राजा गोसलनामा जातिका भाटी तिसके परिवारके १५०० (पंदरहसो) घरोंको श्रीजिनचंद्रसूरीजीने प्रतिबोध करके ओसवाल वंश और आधरिया गोत्र स्थापन किया.
१४. जातिका देवडा चोहान जालोरका राजा सामंतसिंहके १२ ( बारह ) वेटेंमेंसे छोटे पुत्र वछाके नामसे ओसवाल वंश और वछावत गोत्र स्थापन किया
१५. सपादलक्षदेश और कुंभारीनगरीका यादववंशी उरधर नाम राजाको श्रीपद्मप्रभसूरीजीने प्रतिबोध करके ओसवालवंश और जमिया गोत्र स्थापन किया.
१६. पीपाट नगरका गहलोधवंशी कर्मसिंहराजाको श्रीजयशेखर सूरीजीने प्रतिबोध करके ओसवालवंश और पीपामा गोत्र स्थापन किया___ इत्यादिक अनेक गोत्रके भेदसे ओसवालोंकी उत्पत्ति समझनी और विशेषलिखनेका यह है कि फकत रजपूत और महेश्वरी वाणिया और ब्राह्मणसे अर्थात् इन तीन ही जातिसे ओसवाल बने हैं और लोक नीच जातिसे ओसवाल बने ऐसा कहते हैं सो झूट है___ और इसमें बलाई गोत्र और चंडालिया गोत्र और बंभी गोत्र इत्यादिक गोत्रके भेद हैं सो कोई नीच जातिसे इनका नाम नहीं पड़ा है केवल इन लोकों का इन नीच जातियों के साथ बेपार ( रोजगार ) करने करके लोगोंने वैसा वैसा नाम देदिया है.
और इन तीनों ही वर्णमेसे एक श्रीजिनदत्तसूरीजीने ही सवालक्ष घर ओसवाल पदमें स्थापन किये हैंऔर आचार्य महाराजका सामान्य विचार ऊपर लिखकर जनाया है
नकल चिठीकीश्रीकिशनगढ महाशुभस्थाने श्रावक पुण्यप्रभावक सागरचंद लखमीचंद तथा गुलाबचंद लाभचंद योग्य जोधपुरसे बडे, महाराज श्रीपुज्याचार्य श्रीमदानंद सूरिजी महाराज की तरफसे धमलाभ बांचंसो और यहां सब मुनि महाराज सुख सातामें वर्ते हैं. आपका पत्र आया बांचकै बहोत ही आनंद हुआ है. विशेप लखवानुं आपने मंगाया प्रश्न शास्त्रको तपास कर तिसका थोडासा तरजुमा अर्थात् नकल दाखल भेजा है शुभ मिती सम्बत् १९४५ आपाढ सुदि ९-लि. मुनि अमरविजयका धर्मलाभ वांचसो- .