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ओसवालवंशोत्पत्तिपत्रम् सम्वत् १९४६ की सालमें कृष्णगढ नगरमें श्रीमान् महाराजाधिराज श्री' शार्दूलसिंहजी वालीय रियासत की राजसभामें ओसवालोंकी उत्पत्ति पर कई तरहके विचार चलने पर श्रीमानके हुक्मसे पूज्यश्री १०८ युत न्यायांभोनिधि तपगच्छाचार्य श्रीमद्विजयानंदजी (आत्मारामजी) महाराजसे कि जो उस वक्त जोधपुर चातुर्मास रहे हुए थे, विनयपूर्वक दरयाफ्त किया गया तो आपाढ सुदि ९ सम्वत् १९४६ के पत्र के साथ आचार्य महाराजने कृपाकरके ओसवालोंकी उत्पत्तिका हाल लिखा जिससे उस वक्त श्रीदरवार कृष्णगढमें मालूम करके जो जो शकूक ओसवालोंकी उत्पत्तिके पैदा होते थे उनको निवारण किये उसीको इस ग्रन्थके साथ इस वास्ते लगाया जाता है कि उसकी उत्पत्तिका वृत्तांत भी इसके साथ हमेशाके वास्ते लगा रहे तो पाठक गणोंको उपयोगी होगुरुमहाराजके पत्रमें इस मुवाफिक लेख है:ओसवाल लोगोंकी उत्पत्ति नीचे मुजब संक्षेपसे लिखते हैं सो समझलेना१. श्री भिन्नमाल नगरका राजा श्रीपुंज था उसके दो मंत्री हुए:-(१) सा. उहड. (२) सा. उधरन. इन दोनों मंत्रियोंको श्रीविक्रमादित्यसे ४०० (चारसो) वर्ष पहले श्रीरत्नप्रभसूरिजीने प्रतिबोध करके इनके वंशमें से अठारह ( १८) गोत्र ओसवालोंके स्थापन किये उनका नाम नीचे मुजब है(१) तातहड गोत्र
(२) बाफणा गोत्र , (३) कर्णाट गोत्र
(४) वलहरा गोत्र (५) मोराक्ष गोत्र
(६) कुलहट गोत्र (७) बिरहट गोत्र
(८) श्रीश्रीमाल गोत्र (९) श्रेष्ठि गोत्र
(१०) सुचेती गोत्र (११) आइचणांग गोत्र ( १२) भूरि गोत्र ( भटेवरा) (१३) भाद्र गोत्र
(१४) चीवट गोत्र (१५) कुंभट गोत्र
(१६) मिंडू गोत्र (१७) कनोज गोत्र (१८) लघुश्रेष्ठि गोत्र २. लखीजंगल नगरमें रत्नप्रभसूरीजीने दस हजार ( १०,०००) घर रजपूतोंके प्रतिबोध करके जैनी किए और उनको ओसवाल पदपर स्थापन किए उनके सुघयादि अनेक गोत्र स्थापन किए- .