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प्रमाणवाद
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दहीके व्रतवाला दूध नहीं पीता, और गोरसकी प्रतिज्ञावाला इन दोनोंको ही नहीं खाता, अतः वस्तुमात्रमें तीन धर्म हैं।" जो मनुष्य इस तरह नहीं मानता उससे यह प्रश्न पूछना चाहिये कि जव घटका विनाश होता है तब क्या वह घट अपने एक भागसे नाशको प्राप्त होता है या समस्ततया याने सर्व प्रकारसे नाशको पाता है ? यदि यों कहा जाय कि वह घट अपने एक भागसे विना शको प्राप्त होता है तो यह यथार्थ नहीं। क्योंकि घट यदि अपने एक भाग द्वारा ही नाश पाता हो तव फिर उसका समूचेका नाश नहीं होना चायिये । परन्तु जव घड़ा फूटता है उस वक्त कोई भी प्रामाणिक मनुष्य यह कदापि नहीं कहता कि घटका एक भाग नाश हो गया, किन्तु सब ऐसा ही कहते हैं कि सारेघड़ेका नाश हुआ। यदि कदाचित् ऐसा कहा जाय कि घटका सर्व प्रकारसे नाश होता है तो यह भी ठीक नहीं है। क्योंकि यदि घटका सर्व प्रकारसे नाश होता हो तो फिर घटके फूटे बाद उसके ठींकरे और मिट्टी तक भी न रहनी चाहिए, परन्तु घटके फूट जानेपर ठीकरे और मट्टी वाकी रहते हैं यह बात सव ही जानते हैं और नजरसे देखते हैं अतः यह कैसे माना जाय कि घटका सर्व प्रकारसे नाश हो जाता है ? इस प्रकार इन दोनों पक्षमें दूषण आनेके कारण उस मनुष्यको जबरदस्ती यह मानना पड़ेगा कि घट रूपले नाश होता है और ठीकरोंके रूप में उत्पन्न होता है एवं मिट्टीरुपमें स्थिर रहता है। तथा हम उस मनुष्यको यह भी पूछ सकते हैं कि जिस वक्त घट उत्पन्न होता है तब क्या वह एक भागसे उत्पन्न होता है, या सर्व प्रकारसे? यदि यो कहा जाय कि घट एक विभागसे. उत्पन्न होता है तो यह वात ठीक नहीं, क्योंकि जव घट उत्पन्न होकर तैयार होता है तब कोई ऐसा नहीं मानता कि यह घड़ा इसके एक भागसे उत्पन्न हुआ है, परन्तु सब ऐसा ही मानते हैं कि सम्पूर्ण घट उत्पन हुआ है और व्यवहार भी इसी प्रकार चलता है। यदि यों कहा जाय कि घट अपने सर्व प्रकारों द्वारा उत्पन्न होता है, तो यह भी यथार्थ नहीं है क्योंकि यदि ऐसा हो तो घड़ा सर्व प्रकारसे उत्पन्न हुआ-होनेके कारण