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स्त्री मोक्षवाद
. १५५ पुरुषोंको मोक्ष प्राप्त करनेके योग्य मानाजाता है वैसे हीस्त्रियोंको भी मोक्षके योग्य सानना सर्वथा सत्य और शुक्तियुक्त है । त्रियाँ भी मोक्षके कारणोको सस्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान, और सम्यकचारित्रको संपूर्ण शीतले प्राप्त करनेकी शक्तिवाली होनेसे पुरुषों के समान ही उन्हें भी मोक्ष संघटित हो सकता है और वे भी अजर, अमर, हो सकती हैं । इस प्रकार मोक्षतत्वका विवेचन है । कितने एक जो यह मानते हैं कि 'धर्मरुप धारोको पाँधनेवाले शानी मोक्ष पद तक पहुँच कर भी लोगों में अपने स्थापन किये हुये धर्म की शवगणना होती हुई देखकर फिरसे संसारमें अवतार धारण करते हैं। यह बात सर्वथा असत्य है।पयोकि मोक्ष यह एक अमर स्थान है वहाँपर पहुंचे बाद किसीका जन्म, मरण, या रोग, शोक, रह नहीं सकता, ऋतएव उपरोक्त मान्यता मन भरी है। . जो अडोल मनवाला मनुष्य उपरोक्त नव तत्वों पर श्रद्धा रखता है वह सम्यक्त्व और सम्यगशानका भाजन बनता है और उसके द्वारा ही वह सच्चारित्रको प्राप्त करनेके लायक होता है।
ऊपर बतलाये हुये नव ही तत्वोंको जो स्थिर मनवाला मनुष्य फिली प्रकारकी शंका वगैरह किये बिना ही जानता है और श्रद्धा पूर्वक उन्हें सत्य मानता है उसे सम्यग् दर्शन और सम्यग् शानका योग होनेसे सख्या चारित्र भी प्राप्त हो सकता है । जो मनुष्य उपरोक्त नव ही तत्वोंको जानता हो परन्तु उन्हें श्रद्धापूर्वक सत्य न मानता हो उसे मिथ्या दर्शनवालाही सानना चाहिये। इस विषयमें श्री गन्धहरतीजीने महातर्क अन्यमें इस प्रकार वर्णन किया है-"जो इन नव तत्वोंको श्रद्धापूर्वक सत्य न मानता हो उसके लिये यारह अंग भी मिथ्या-भसत्य हैं"। चारित्रका अर्थ पापकी प्रवृत्तिसे रुकना होता है। और वह दो प्रकारका है-एक तो सर्व पापोंसे रुकने रूप, और दूसरा थोड़े पापोंसे रुकने रूप । जिस मनुष्यने उपरोक्त सम्यग्दर्शन, और सम्यग्ज्ञान प्राप्त किया है वह दोनों प्रकारके चारित्रको प्राप्त करनेके लायक होता है । शानसे भी सम्यग्दर्शन (श्रद्धा) अधिक महत्वका होनेके कारण उसे ज्ञानसे पहले रखा गया है और इसपरसे यह भी लमझ लेना