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जैन दर्शन
उनमें ज्ञान कम हो तथापि उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में कोई बाध नहीं प्राता। अतः स्त्रियोंमें अमुक प्रकारका विशेष बल नहीं इससे वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकतीं यह कथन भी यथार्थ नहीं। धाव यदि आप यह कहेंगे कि उन्हें पुरुष प्रणाम नहीं करते अतः वे हीन हैं । यह कथन भी श्रखत्य है, क्योंकि तीर्थंकरों की माताओंको इंद्र तक पूजते और नमस्कार करते हैं। अत: लियाँ हीन कैसे कही जा सकती हैं ? यों तो गणधरोको तीर्थकर नमस्कार नहीं करते श्रतः गणधरोकी हीनताके लिये उनका भी लियोंके समान ही मोक्ष न होना चाहिये। तथा तीर्थकर चारों प्रकारके संघको कि जिसमें स्त्रियाँ भी था जाती हैं नमस्कार करनेवाले होनेसे उन्होंकी हीनता किस तरह मानी जाय? यदि आप यह कहेंगे कि स्त्रियाँ किसीको पढ़ा नहीं सकती इससे वे मोक्षके योग्य नहीं हैं, तो यह कथन भी आपका सरासर असत्य ही है। क्योंकि यदि ऐसा ही हो तो किसी पढ़नेवालेका तो मोक्ष ही न होना चाहिये और मात्र पढ़ानेवाले ही मोक्षमें पहुँच जाने चाहिये । अर्थात् प्राचार्योंका. ही मोक्ष होना चाहिये और शिष्यको तो संसारमें ही लटकते रहना चाहिये। यदि आप.यह कहेंगे कि स्त्रियोंके पास किसी प्रकारकी ऋद्धि सिद्धि नहीं इसीसे वे मोक्षके लायक नहीं हैं, तो यह कथन भी उचित नहीं है, क्योंकि बड़ी ऋद्धिवानेका ही मोक्ष हो ऐसा कुछ नियम नहीं । कितने एक दरिद्री भी मोक्षको प्राप्त कर चुके हैं और कितने एक बड़ेसे बड़े ऋद्धि सिद्धि वाले चक्रवर्ती भी मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं। यदि अन्तमें यह कहेगें कि स्त्रियों में कपट वगैरह अधिक होता है प्रत एव वे मोक्षके लायक नहीं, तो यह कथन भी आपका असत्य ही है। क्योंकि नारद ऋषि जैसे खटपटी और दूसरोंको लड़ा मारनेवाले तथापि दृढ़ प्रहारी जैसे महाघातकी पुरुष भी, मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं तो फिर स्त्रियोंमें कपटकी अधिकता होनेसे उन्हें हीन समझ कर मोक्षके अयोग्य मानना यह सर्वथा असंत्य है.। इस प्रकार किसी भी तरह नियोकी. हीनता साबित नहीं हो सकती और इससे वे सोक्षके अयोग्य भी नहीं हो सकतीं। अतः जिस.प्रकार