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जीववाद
माणुका स्वरूप इस प्रकार है-परमाणु सूदम होता है, नित्य होता है, उसमें एक रस, एक वर्ण, और एक गन्ध होता है और दो स्पर्श होते हैं । उसका कद इतना सूक्ष्म होता है कि जिससे वह आँखोंसे नहीं देखा जा सकता तथापि उसकी विद्यमानता उससे बनी हुई वस्तुओं परसे मालूम हो सकती है। वह वस्तु मात्रका कारण है और वह बारीकीमें अन्तिम कद है । परमाणुका परमाणुत्व कायम रहनेले अर्थात् परमाणुत्वकी अपेक्षा परमाणु नित्य है और उसके रस स्पर्श गन्ध और वर्णमें परिवर्तन होनेसे वह अनित्य है। वह बिलकुल छोटेसे छोटी चीज है, अतएव उसका नाम अणु परम-अणु पड़ा है। उस प्रत्येक परमाणु में पांच रसमेसे कोई एक रस, दो गन्धर्मसे कोई एक गन्ध, पांच वर्णीमेसे कोई एक वर्ण और पाठ स्पामसे परस्पर अविरुद्ध इस प्रकारके दो स्पर्श होते हैं । अर्थात् चिकना और गरम, चिकना और ठंडा, रुक्ष और ठंडा तथा रुक्ष और गरम इन चारों से कोई न कोई दो स्पर्श होते हैं। यद्यपि वह नजरसे नहीं दीख सकते तथापि दो परमाणु
ओकी बनी हुई वस्तुसे लेकर और अनन्त परमाणुओंकी बनी हुई वस्तुतककी समस्त वस्तुयें परमाणुओंकी विधमानताको करनेके लिये काफी हैं। स्कन्धोके जुदे जुदे विभाग हो सकते हैं और उनमैसे कितने एक स्कन्ध लिये और छोड़े भी जा सकते हैं एवं व्यव हारमें भी आ सकते हैं। इस प्रकार जीवसहित धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश, काल और पुद्गल ऐसे छह द्रव्य हैं । इन छहोंमेंसे पहले चार याने धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश और काल, ये एक द्रव्य हैं । अर्थात् ये अखण्ड द्रव्य हैं । ये किसी भी वस्तु के कारण नहीं और न ही इनमेसे कोई वस्तु वनती हैं। जीव और पुद्गल ये दो द्रव्य अनेक द्रव्य हैं । अर्थात् ये दोनों अनेक वस्तुओके कारण हैं और इन्हीसे अनेक वस्तुयें बनती हैं। पुगल सिवाय पाँचों द्रव्य असूत हैं याने आकाररहित हैं और पुगल द्रव्य मूर्त याने आकारवान है।
१ तत्वार्थसूत्र अध्याय पांचवेंका चौवीसवा सूत्र देखिये !-शब्दगन्ध सौम्यस्थौल्यसंस्थान्नभेदतमःछायाऽऽतपोधोतवन्तश्च ।'