SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उससे इस लोकमें यश, कीर्ति और परलोकसें सुखशान्ति प्राप्त होती है। पुण्यानुवन्धी पुण्यसे प्राप्त होनेके कारण आपकी लक्ष्मीका सत्कृत्यों में अच्छा उपयोग हुश्रा । आपने उन्नीसौ छपन्नके दुकालमें दुष्काल पीड़ित मारवाड़ी भाइयोंकी खूव ही सेवा की। आपकी दो शादी हुई थीं जिसमें दूसरी धर्मपत्नीसे आपको पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई तीन सालकी उमरवाले अपने पुत्रके बराबर आपने श्री केशरीयाजीमें उन्नीस रतल केशर चढ़ाया और १००० रु. भंडारमें डाला । सम्वत् १८४६ मैं आपने उजमना कराया था जिसमें अपने पिताका टाणा और परातोंकी नाणी मिलाकर कुल खर्च सात हजार किया था। सम्बत् . १८६३ स्वामी वात्सल्य किया। सस्वत् १८१२ तीर्थ सम्मेदशिखरमें नवकारसी की जिसमें ८०० रु, खर्च किये। 'चारणेश्वरजीमें आपने सार्वजनिक धर्मशाला वनवाई और उसमें सर्वसाधारण जनताके उपयोगमें आनेके लिये एक हजार थाली वगैरह बरतन भी समर्पण किये । संवत् १८८० में आपने उपधान कराया था जिसमें ३८१ स्त्री पुरुषोंने लाभ लिया था और उसमें आपने उदारतापूर्वक १६ हजारकी रकम खर्च की थी, । संघ निकालनेके प्रसंग पर सादड़ी गांवमें जो बहुत वर्षोले संघर्भ सात तड पड़े हुये थे उन सवको मिलाकर श्रापने वहां नवकारसी की। १९५९ में आपने कालन्द्रीके मन्दीरमें चार देरियाँ बंधवाई, जिसमें ग्यारहसौ रुपये खर्च किये। कालन्द्रीके मन्दिरमें चांदिका रथ वनवा कर समर्पण किया उससे आपकी गोकाककी कंपनीकी तरफसे तीन हजार रुपये खर्च किये। आपने मारवाड़ देशमें करीब एक लाख रूपया सत्कार्यो में खर्च किया। १९६३ में आप यात्रार्थ सिद्ध क्षेत्र, पालिताणा पधारे थे वहाँ पर आपने नवकारसीमें पांच हजारकी रकम खर्च की। १९६४ में आपने बड़ी धामधूमसे श्रीकेशरियाजीका संघ निकाला जिसमें उदारता पूर्वक लगभग ३८ हजार रुपये खर्च किये।। अन्तमें आप अपने हाथले कमाई हुई लक्ष्मीका लत्कार्यों में सदुपयोग करते हुये १९६७ में भाद्रव कृष्ण चतुर्थीके रोज
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy