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( १५६ ) तद्देवनामके ह्यथ जना प्रतिभक्तिवशाच्चेत् तादृशी भक्ति कुर्वन्ति तहि स स्थापनानिक्षेप एव न तु नामनिक्षेपः । __ अथ नामवतोऽर्थस्य विद्वद्भि. स्थापना क्रियते । नाम्नो व्यवहारस्तु. चतुभिन्यासर्भवति । अतोऽत्र कीङ नामवतोऽर्थस्य स्थापना विधीयते इतिचेदुच्यते
चतुविधेष्वपि नामसु स्थापनां कर्तुं शक्यते । महावीरादिपूज्यानां या मूर्त्यादी स्थापना क्रियते सा नामनिक्षेपनिक्षिप्तनामधेयवतामस्ति । या च महावीरादिप्रतिमाचित्रे महावीरादे स्थापना क्रियते सा स्थापनानिक्षेपनिक्षिप्तनामवतामस्ति । द्रव्यनिक्षेपतो युवराजोऽपि राजा प्रोच्यते । अतो युवराजस्य मूर्त्यादी राजाख्या स्थापना द्रव्य निक्षेपनिक्षिप्तनाम्न स्थापना ज्ञातव्या। भावनिक्षिप्तराजस्य या स्थापना सा भावनिक्षेपनिक्षिप्तनामवतः स्थापना प्रोच्यते । एपा स्थापमा नित्याऽपि भवति अनित्याऽपि च । नन्दीश्वरादिद्वीपस्थितनित्यचैत्यादीनां स्थापना __ समाधान-चारोही प्रकार के नामों में स्थापना किया जाना संभव है। जो मूर्ति वगैरह मे महावीरादि पूज्य पुरुषो की स्थापना की जाती है वह नामधारियों की नाम निक्षेप के द्वारा स्थापना है। और महावीर वगैरह के प्रतिमा या चित्र में जो महावीर वगैरह की स्थापना की जाती है वह नाम धारियों की स्थापना निक्षेप से रखी गई स्थापना है। द्रव्य निक्षेप से युवराज को भी राजा कहा जाता है। इसलिए युवराज की मति वगैरह में राजा नाम की स्थापना द्रव्य निक्षेप द्वारा कायम की गई स्थापना जाननी चाहिये। जो स्थापना भाव निक्षेप द्वारा राजा की की जाती है वह स्थापना भाव निक्षेप के द्वारा रखी गई स्थापना कही जाती है। यह स्थापना नित्य भी होती है और प्रनित्य मी । नंदीश्वर वगैरह द्वीपो में जो शास्वत चैत्या
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