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जातिमाश्रमद: कार्यो न नीचत्वप्रयोजक
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उच्चत्वदायकः सद्भि कार्य शीलसमादर ||६||
ब्राह्मत्वादयो भेदाह्योपाधिका न चेमे नित्या । तेषां स्वयं विलोपस्वीकारात् । क्रियाविलोपाच्छूद्रान्नादेश्च ब्राह्मणस्य जातिलोपः स्वयमेवाभ्युपगत जातिवादिभिः ।
शूद्रान्नाच्छूद्र संपर्काच्छूद्र रेण सह भाषरणात् ।
इह जन्मनि शूद्रत्वं, मृतः श्वा चाभिजायते ॥ इत्यभिधानात् न च ब्राह्मणत्वादयो जातयः प्रत्यक्षादिप्रमारणतः प्रतीयन्ते । न खण्डमुण्डादिपु सादृश्यलक्षरणगोत्ववद् देवदत्तादौ ब्राह्मणत्व
मात्र नीचत्व का सूचक जाति का अभिमान कभी नहीं करना चाहिए और सज्जनों को सदा सदाचार का ही समादर करना चाहिए जो कि उच्चता प्रदान करने वाला है ||६||
ब्राह्मणत्व वगैरह जो भी भेद हैं वे कृत्रिम है, ये नित्य प्रर्थात् ग्रमिट नही हैं क्योंकि उन्होंने स्वयं ही उस जाति का लुप्त हो जाना माना है । उच्चकर्म के प्रभाव होने तथा शूद्रो के यस वगैरह के उपयोग से ब्राह्मण जाति का लुप्त हो जाना जातिवादियों ने स्वयं ही स्वीकार किया है ।
कहा भी है
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शूद्र का अन्न खाने से शूद्र के साथ सम्पर्क करने से और शूद्र के साथ वार्तालाप करने से इस जन्म मे शूद्र हो जाता है और मरकर कुत्ता बन जाता है ।
और ब्राह्मत्व वगैरह जातिया प्रत्यक्षादि प्रभारणों से प्रतीत नही होती । खण्डी मुण्डी गायो में समान लक्षरण गोत्व की तरह देवदत्त वगरह मे ब्राह्मणत्व जाति अन्य है ऐसा प्रत्यक्ष प्रमाण