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( १२४ ) द्वयं । मृद्रव्यरूपेण घटस्यकत्व स्थासकोशकुसूलादिपर्यायेपु तस्यकत्वात् । पर्यायरूपेणानेको घट: रूपरसाधनेकपर्यायात्मकस्वाद् घटस्य ।
नन्वयमनेकान्तवादश्छलमात्रमेव, तदेवास्ति तदेवनास्ति तदेव नित्य तदेवानित्यमिति प्ररूपयरूपत्वादस्येति चेन्न-छललक्षणाभावात् । अभिप्रायान्तरेण प्रयुक्तस्य शब्दस्यार्थान्तरं परिकल्प्य दूषणाभिधानं छलमिति छलसामान्यलक्षणं । यपा नवकम्बलोऽयं देवदत्त इतिवाक्यस्य नूतनाभिप्रायेण प्रयुक्तस्यार्थान्तरमाशंक्य कश्चिद् दूषयति नास्य नव कम्बलाः सन्ति दरिद्रत्वात् । द्विकम्बलवत्वमपि न संभाव्यतेऽस्य कुतो नवेति ।
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मृत्तिका रूप द्रव्य पिण्ड सम्पूर्ण पर्यायों मे अनुगत है और वह ऊर्वता सामान्य रूप है। पर्याय रूप से घट अनेक है; क्योंकि घट रूप रस गन्ध तथा स्पर्श आदि अनेक पर्यायात्मक है।
शका-यह अनेकान्तवाद मात्र छल है। वही है-वही नही है. वही नित्य है-वही अनित्य है-अनेकान्तवाद इस तरह निरूपरण करता है । अतः मात्र छल है।
समाधान-ऐसा कहना घुक्त नहीं; क्योंकि अनेकान्तवाद मे छल का लक्षण नहीं घटता। छल का सामान्य लक्षण है अन्य अभिप्राय से कहे गए शब्द का अन्य अर्थ कल्पना कर दूषण देना। जैसे कि यह देवदत्त नव कंवल युक्त है। यहाँ नव का अर्थ नवीन अभिप्राय से कथित नव शब्द को अन्य अर्थ में कल्पना करके कोई दूपण देता है कि देवदत्त के नो कम्बल कहां से आए; क्योंकि वह दरिद्री है। इसके तो दो कंबलों की ही सभावना नहीं तो नो कहा से हो सकते हैं ? इस तरह के छल के लक्षण का अनेकान्तवाद में कोई प्रसग ही नहीं है;