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. ( १२३ ) सम्यगनेकान्तः । प्रत्यक्षादिविरुद्धानेकधर्मपरिकल्पनं मिथ्याने. कान्तः । तत्र सम्यगेकान्तो नयः,मिथ्र्यकान्तो नयाभासः । सम्यगनेकान्तः प्रमाण, मिथ्यानेकान्तश्च प्रमाणभास इति कथ्यते ।
तथा च सम्यगेकान्तसम्यगनेकान्तावाश्रित्य प्रमाणनयविवक्षाभेदात् स्यादेकान्तः, स्यादनेकान्त', इत्यादिसप्तभलाः करपाया । इयं च सप्तभङ्गी नित्यत्वानित्यत्वैकत्वानेकत्वादि. धर्मध्वपि निरूपणीया। यथा स्यान्नित्यो घटः स्यादनित्यो घट इतिमूलभगद्वय । घटस्य द्रव्यरूपेण नित्यत्वात् .पर्यायरूपेणचानित्यत्वात् । तथैव स्यादेको घट. स्यादनेको घट इतिमूलभंग
प्रमाणों से विमद्ध जो एक वस्तु में अनेक धर्मों का निरूपण करे वह मिथ्या अनेकान्त है । इनमे सम्यक् एकान्त तो नय है और मिथ्या एकान्त नयाभास है । और इसी प्रकार सम्यक् अनेकान्त प्रमाण माना गया है तो मिथ्या अनेकान्त प्रमाणाभास है-ऐसा कहा गया है।
इस प्रकार सम्यक् एकान्त और सम्यक अनेकान्त का प्राश्रय लेकर प्रमाण नय के भेद की योजना से किसी अपेक्षा से अनेकान्त, किसी अपेक्षा से उभय किसी अपेक्षा से प्रवक्तव्य है। कथंचित् एकान्त अवक्तव्य, कथचित् अनेकान्त प्रवक्तव्य और कचित् एकात अनेकान्त अवक्तव्य है-इस तरह सात भंग करने चाहिए । और इस सप्त भगी को नित्यत्व, अनित्यत्व, एकत्व, अनेकत्व ग्रादि धर्मों में भी इसी तरह प्रयुक्त करना चाहिए । जैसे कि घट कचित् नित्य है, कथचित् अनित्य हैये दो मूल भंग है; क्योकि घट द्रव्य रूप से नित्य है और पर्याय रूप से अनित्य है । एकत्व तथा अनेकत्व सप्तभंगी की योजना इस प्रकार है-कचित् घट एक है और कथचित् अनेक है-ये दो मूल भंग हैं। यहा द्रव्य रूप से घट एक ही है। क्योंकि एक