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जैन दर्शन में आचार मीमासा
[१४३ एक जाति या राष्ट्र दूसरी जाति या राष्ट्र पर हावी हुआ या होता है, वह इसी एकान्तवाद की प्रतिच्छाया है।
पर के जागरण-काल में स्व के उत्कर्ष का पारा ऊँचा चढ़ा नहीं रह सकता। वहाँ दोनों मध्य रेखा पर आ जाते हैं। इनका दृष्टिकोण सापेक्ष बन जाता है।
आज की राजनीति सापेक्षता की दिशा में गति कर रही है। कहना चाहिए-विश्व का मानस अनेकान्त को समझ रहा है और व्यवहार में उतार रहा है।
स्वेज के प्रश्न पर शान्ति, सद्भावना, मैत्री और समझौतापूर्ण दृष्टि से विचार करने की जो गूंज है, वह वृत्तियो के सन्तुलन की प्रगति का स्पष्ट संकेत है। यही घटना यदि सन् १६४६ या ३६ में घटी होती तो परिणाम भयंकर हुआ होता किन्तु यह मन् ५६ है।
इस दशक का मानम समन्वय की रेखा को और स्पष्ट खीच रहा है।
भगवान् महावीर का दार्शनिक मध्यम मार्ग ज्ञात-अज्ञात रूप में विकसित हो रहा है।
अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में पंचशील की गूंज, बांडुंग सम्मेलन में उनमें और पांच सिद्धान्तों का समावेश, २६ राष्ट्रों द्वारा उनकी स्वीकृति-थे सव समन्वय के प्रगति-चिह्न हैं। पंच शी १-एक दूसरे की प्रादेशिक या भौगोलिक अखण्डता एवं सार्वभौमिकता
का सम्मान। २-अनाक्रमण । ३-अन्य देशों के घरेल मामलो में हस्तक्षेप न करना। ४-समानता एवं परस्पर लाभ ।
५-शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व । . दश सिद्धान्त
बांडुंग सम्मेलन द्वरा स्वीकृत दश सिद्धान्त ये हैं :