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जैन दर्शन में आचार मीमांसा
वस्तुएं बदलती हैं, क्षेत्र बदलता है, काल बदलता है, विचार बदलते हैं, इनके साथ स्थितियां बदलती हैं । वदलते सत्य को जो पकड़ लेता है, वह सामञ्जस्य की तुला में चढ़ दूसरो का साथी वन जाता है ।
समय-समय पर हुई राज्यक्रान्तियो ने राज्यसत्ताओ को बदल डाला । राज्य की सीमाएं बदलती रही हैं । शासन काल बदलता रहा है। शासन की पद्धतियां भी बदलती रही हैं। इन परिवर्तनों का एक मूल्यांकन करनेवाले ही अशान्ति को टाल सकते हैं । गाँधी, नेहरू और पटेल अखन्ड भारत के सिद्धान्त पर अड़े ही रहते, जिन्ना की माँग को स्वीकार नहीं करते तो सम्भवतः शान्ति उग्र रूप लेती । किन्तु उनकी सापेक्ष नीति ने वस्तु, क्षेत्र, काल और परिस्थिति के मूल्यांकन द्वारा अशान्ति को निर्वीर्य वना दिया ! ऐकान्तिक आग्रह
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भारत में राज्य पुनर्रचना को लेकर अभी-अभी जो असन्तुलन आाया, वह केवल ग्राग्रही मनोवृत्ति का निदर्शन है । भारत की अखण्डता में निष्ठा रखनेवाले काश्मीर से कन्याकुमारी तक एक झण्डे की सत्ता स्वीकार करनेवाले प्रान्त-रचना जैसे छोटे प्रश्न पर उलझ गए । हिंसा को उभारने लग गए । भारत संवर्ग व संघात्मक राज्य है । संविधान की तीसरी धारा के द्वारा पार्लियामेंट को यह अधिकार प्राप्त है कि वह विधि द्वारा राज्यो की सीमाओ में परिवर्तन कर सकेगी, राज्य का क्षेत्र घटा-बढ़ा सकेगी, नया राज्य वना सकेगी ।
इस व्यवस्था के विरुद्ध जो आन्दोलन चला, वह परिवर्तन की मर्यादा को न समझने का परिणाम है । भापा के आधार पर राज्यो के पुनर् निर्माण में जो तथ्य है, तथ्य केवल वही नही है
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भाषा की विविधता में जो सांस्कृतिक एकात्मकता है, वह भी तो एक तथ्य है ।
भेदात्मक प्रवृत्तियो के ऐकान्तिक ग्रह से अखण्डता का नाश होता है ।
अभेदात्मक वृत्ति के एकान्त ग्रह से खण्ड की वास्तविकता और उपयोगिता का लोप होता है ।