________________
जैन दर्शन में आचार मीमांसा
[ ९९
( ५ ) तपस्वी, ( ६ ) स्थविर, (७) साधर्मिक - समान धर्म प्रचार वाला,
६) कुल, (६) गण, (१०) संघ |
गौतम —— भगवन् ! स्वाध्याय क्या है ?
भगवान् गौतम ! स्वाध्याय का अर्थ है - श्रान्म - विकासकारी अध्ययन | इसके पांच प्रकार हैं ।
(१) वाचन, ( २ ) प्रश्न, ( ३ ) परिवर्तन स्मरण, (४) अनुप्रेक्षाचिन्तन ( ५ ) धर्म-कथा |
गौतम — भगवन्— ध्यान क्या है ?
भगवान् - गौतम ! ध्यान ( एकाग्रता और निरोध ) के चार प्रकार है— ( १ ) आर्त्त, ( २ ) रौद्र, (३) धर्म, ( ४ ) शुक्ल ।
आर्त्त ध्यान के चार प्रकार हैं - ( १ ) अमनोज्ञ वस्तु का संयोग होने पर उसके वियोग के लिए, (२) मनोज्ञ वस्तु का वियोग होने पर उसके संयोग के लिए, (३) रोग-निवृत्ति के लिए, (४) प्राप्त सुख-सुविधा का वियोग न हो इसके लिए, जो आतुर भावपूर्वक एकाग्रता होती है, वह श्रार्त्त ध्यान है ।
( १ ) आक्रन्द, ( २ ) शोक, ( ३ ) रुदन और (४) विलाप – ये चार उसके लक्षण हैं |
( १ ) हिंसानुबन्धी ( २ ) असत्यानुवन्धी ( ३ ) चोर्यानुबन्धी प्राप्त भोग के संरक्षण सम्बन्धी जो चिन्तन है, वह रौद्र ( क्रूर ) ध्यान है ।
( १ ) स्वल्प हिंसा आदि कर्म का आचरण ( २ ) अधिक हिंसा आदि कर्म का आचरण ( ३ ) अनर्थ कारक शस्त्रो का अभ्यास ( ४ ) मौत आने तक दोष का प्रायश्चित्त न करना -- ये चार उसके लक्षण हैं । ये दो ध्यान वर्जित हैं ।
( १ ) श्राज्ञा - निर्णय ( श्रागम या वीतराग वाणी ), ( २ ) अपाय, ( दोष - है ) - निर्णय, ( ३ ) विपाक ( हेय - परिणाम ) निर्णय, ( ४ ) संस्थाननिर्णय -- यह धर्म - ध्यान है ।
( १ ) आज्ञारुचि, ( २ ) निसर्गरुचि, (३) उपदेश - रुचि, (४) सूत्ररुचि - यह चतुर्विध श्रद्धा उसका लक्षण है ।