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________________ हो जाती है। कितने दिन में वो पूर्णरूप से व्यय हो जायगा अथवा विषाक्त हो जायगा वह निम्नोक्त बातों पर निर्भर करता है (१) अमृत की मात्रा (Quantity of Nectar) (२) खर्च करने की दर (Rute of consumption) (३) विषाक्त होने की दर ( ate of pri oning) अब हम इन शब्दों की विशेष व्याख्या करते हैं : अमृत की मात्रा और खर्च करने की दर किमी के पास हजार रुपये हैं और किसी के पास केवल एक । साधारण बुद्धि तो यही कहती है कि एक के मुकाबले में हजार रुपये ज्यादा दिन चलेगे, मगर यह कोई जरूरो नहीं है । ऐसा भी सम्भव है कि हजार रुपये वाला व्यक्ति अपने हजार रुपये एक ही दिन में खर्च करदे और एक रुपये वाला व्यक्ति केवल एक नया पैमा ही रोज खर्च करे तो उसका एक रुपया १०० दिन चल जायेगा। जो अपने हजार रुपये एक ही दिन में खर्च कर देता है वह असंयमी है और एक नया पैसा खर्च करने वाला संयमवान। कहने का अभिप्राय यह है कि यदि आप संयम का जीवन व्यतीत करेंगे तो आपका अमृत स्टोर थोड़ा होने पर भी ज्यादा दिन चल जायेगा । दूसरे शब्दों में व्रत संयम का जीवन व्यतीत करने से पाप पूर्णायु के भोक्ता होंगे क्योंकि अमृत के खर्च की दर कम हो जायगी। विषाक्त होने की दर (Rate of poisoning) हम जो भोजन करते हैं उसका कुछ अंश शरीर का
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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