SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस संस्था की सदस्यता अत्यन्त दुर्लभ है । भारतवर्ष में प्रब तक केवल ५-६ व्यक्ति ही इस सदस्यता के योग्य समझे गये हैं। उनके नाम हैं-श्री रामानुजम्, सर जगदीशचन्द्र वसु, सर सी. वी. रमण, डा० मेघनाद सहा, डा० बीरबल साहानी और प्रो० भाभा । रॉयल सोमायटी के सामने बोलते हुए अभी थोड़े दिन हुए, जीव विज्ञान के एक प्रोफेसर ने कहा था 'हम इमलिये मरते हैं कि हम खाते हैं और दिन में कई बार खाते हैं । यह बात भी सत्य है कि भूख और अकाल से मरने वालों की संख्या उन मरने वालों की अपेक्षा कहीं कम है, जो गत-दिन अनाप शनाप ग्वा-खाकर अपने शरीर को रोगी बना लेते हैं और परिणामस्वरूप कालकवलित हो जाते हैं।' इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जहां भोजन ही एक अोर शरीर का आधार है वहीं दूसरी ओर शरीर के रोगी बनने का कारण भी है। अगर बिना खाये शरीर को चलाना सम्भव होता तो हम मदा निरोग रहते और हमारी आयुष्य बढ़ जाती किन्तु यह तो मम्भव नहीं है अतएव अल्प भोजन करने में भी शरीर में जो दोष उत्पन्न हो जाते हैं उनको शमन करने का कोई उपाय ढूढना चाहिये और वह उपाय है 'अनशन' । 'गोम्मटमार' में वर्णन पाता है कि जिम देव की प्रायु १ सागर होती है वह १ पक्ष में एक श्वास लेता है, महीने में २ और वर्षभर में २८ और जब १००० वर्ष में २४,००० श्वांस पूरे कर लेता है तब उसे भूख लगती है। यह भी उल्लेख है कि यदि मनुष्य देवतामों का सा जीवन विता
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy