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अनेक त्वचा रोग से पीड़ित हो गये, बहुतों के सिर के बाल झड़ गये किसी को दस्त लग गये इत्यादि इस रिपोर्ट पर सरकार ने क्या कदम उठाया यह किसी को आज तक मालूम नहीं हुआ । नकली घी के कारखाने प्राज भी पहले से अधिक संख्या में मौजूद हैं ।
बंगलौर साइन्स कांग्रेस में सन् १९४३ में नकली घी पर एक गोष्ठी (Symposium) का प्रायोजन हुआ था, उसमें नकली घी के दोषों पर जो प्रकाश डाला गया उसका सारांश हम यहां देते हैं ।
( १ ) निकल की राख जो तेल में मिलाई जाती है, वह छानने पर सौ फीसदी पृथक् नहीं होती । निकल की ये धूल शरीर के अन्दर पहुंचकर अनेक उत्पात पैदा करती है; क्योंकि मनुष्य के शरीर में निकल कहीं नहीं पाई जाती । मनुष्य के शरीर में तांबा, लोहा आदि धातुयें तो हैं किन्तु निकल नहीं है ।
(२) उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि इसमें शरीरवर्धक Growth promoting रसायन नहीं होती जिसके कारण बच्चे का विकास अच्छा नहीं होता ।
( ३ ) इसमें विटामिनों का अभाव है । जो विटामिन ऊपर से मिलाये जाते हैं वह प्राकृतिक विटामिनों का मुकाबला नहीं कर सकते ।
( ४ ) प्रयोगों द्वारा सिद्ध हुआ है कि वनस्पति घी के सेवन करने से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं । जहां एक ओर गाय के घी के सेवन से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है