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________________ रहा है. किन्तु वह सत्य सम्पुर्ण सत्य नहीं है । सम्पूर्ण सत्य तक पहुंचने के लिये सभी दर्शनों को एक जगह एकत्रित करना पड़ेगा । पाखण्ड और सत्य में केवल इतना ही अन्तर है कि पाखण्डी कहता है यह बात ऐमी ही है सत्यवादी कहता है कि यह बात ऐमी भी है । 'ही' में वस्तु के अन्य धर्मो का निगकरण होता है जबकि 'भी' में अपने धर्म के साथ अन्य धर्मो का सापेक्षता से ग्रहण होता है । दोनों में यह अन्नर जैनाचार्यों ने सत्य को दो भागों में विभक्त कर दिया है :-(१) व्यवहार मन्च : True) और (२) निश्चय सन्य Really true, आइन्मटाइन ने कहा है कि कोई बात व्यवहार मत्य हो मकनी है लेकिन यह जरूरी नहीं कि वह निश्चयात्मक मत्य भी हो (One thing may be true but not really true)। उन्होंने उसे एक उदाहरण देकर समझाया है और उसको समझने के लिये चन्द बातें जान लेना आवश्यक है। विधत दो प्रकार की होती है-अचल और चल । अचल विद्युत को विद्युत प्रादेश (Electric Charge) कहते हैं और चल विद्युत को विद्युत धाग (Flectric Current)। अनल विद्युन के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र नहीं होता अर्थात् जब कोई चुम्बकीय मुई उसके पाम लाई जाती है तो मुई विचलित नहीं होती जिससे चुम्बकीय क्षेत्र का प्रभाव मिद्ध होता है, किन्तु यदि किसी तार के अन्दर विद्य नधारा बह
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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