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________________ कोने में भरा पड़ा है। कुछ लोगों का यह भी मत है कि ३ द्रव्यों (धर्म, अधर्म, आकाश) को पृथक् मानने की प्रावश्यकता न थी. अकेला प्रकाश ही तीनों द्रव्य का काम करता है। किन्तु जैनाचार्य इससे सहमत नहीं। आकाश का कार्य है केवल वस्तुओं को अवगाहना देना (To accolomodate) धर्म द्रव्य का कार्य है एक ऐसा माध्यम प्रदान करना जिसमें पुद्गल और शक्ति (ऊर्जा) एक स्थान से होकर दूसरे स्थान तक जाते हैं। यदि यह माध्यम न होता तो हम कुछ भी देखने में असमर्थ होते । अधर्म द्रव्य वह माध्यम है जिसमें होकर गुरुत्वाकर्षण और विद्युत चुम्बकीय शक्तियां (Gravitational and Electro lragnetic forces) काम करते हैं। इसी माध्यम के कारण स्कन्धों में परमाणु और पदार्थों में स्कन्ध अपने-अपने स्थान पर ठहरे हुये कार्य कर रहे हैं । प्रतएव अकेला आकाश द्रव्य तीनों कार्य नहीं कर सकता। लोक की मर्यादा धर्म और अधर्म द्रव्य को पृथक् और स्वतन्त्र मानने से ही सम्भव है।
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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