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कृतियों को बड़े स्वाभाविक ढंग से चित्रित किया गया है। इसी में पशु, पक्षियों, मछलियों आदिका भी चित्रण है। पताका मुद्रा में अप्सरा और नृत्य करती हई नर्तकी के चित्र भी आकर्षक हैं। राजा और रानी का भी युगलचित्र देखने मिलता है।
एलोरा की इन्द्रसभा की भित्तियों पर गोमटेश्वर के विविध चित्र, दिक्पाल समूह, आलिंगनबद्ध विद्याधर दम्पति, तालवाचक बौनेगण तथा व्योमचारी देवों आदि का सुन्दर चित्रण है। एलोरा के ही कैलाशनाथ मंदिर में भट्टारक के स्वागत का मनोहारी दृश्य अंकित है। यह समूचा दृश्य सजीव लगता है । तिरुमले के एक जैन मंदिर में चोलवंशीय राजराज ने गन्धर्व, यक्ष और राक्षस आदि देवों का चोल चित्र शैली में अंकन कराया है। श्रवणवेलगोला के जैन मठ में समवशरण, दिव्यध्वनि, षड्लेश्या आदि के सुन्दर चित्र मिलते हैं। तिरुप्पत्तिकुणरम् के वर्धमान मंदिर का संगीत मण्डप आकर्षक भित्तिचित्रों से चित्रित है। बाजारगांव (नागपुर) के जैन मंदिरों में लगभग १७-१८ वीं शती के सुन्दर भित्तिचित्र अंकित हैं। पर असावधानतावश उन्हें धूमिल होने से नहीं बचाया जा सका।
सोमदेव ने दो प्रकार के भित्तिचित्रों का उल्लेख किया है । व्यक्तिचित्र और प्रतीकचित्र । व्यक्तिचित्रों में बाहुवलि, प्रद्युम्न, सुपार्श्व, अशोकरोहिणी तथा यक्षमिथुन का उल्लेख है। प्रतीकचित्रों में तीर्थंकरों की माता के द्वारा देखे जाने वाले सोलह स्वप्नों का विवरण है।'
तारपत्रीय शैली :
भित्तिचित्र की परम्परा ११ वीं शती तक अधिक लोकप्रिय रही। उसके बाद ताड़पत्रों पर चित्रांकन प्रारम्भ हुआ। इस प्रकार कीप्राचीनतम चित्रित ताड पत्रीय पाण्डुलिपि षड्खण्डागम की मिलती है जो सन् १११३ की लिखी है और मूडबिद्री में सुरक्षित है। ये पाण्डुलिपियां होयसलकालीन हैं। इन चित्रों में चमकदार रंगों का प्रयोग हुआ है। पांच चित्रित ताडपत्रों में दो पत्र प्रारम्भिक काल के हैं। इन पर पुपार्श्वनाथ की यक्षिणी काली का चित्रण है। उसके एक ओर दम्पति खड़ा हुआ है। बीच में कायोत्सर्ग तथा पदमासनस्थ तीर्थकर महावीर की आकृति है। उसके आसन आदि अलंकृत हैं। दूसरी ओर भक्तयुगल बैठे हुए हैं। अन्य ताड़पत्रों में पार्श्वनाथ और उनकी शासन देवी-देवताओं
१. यस्तिलकचम्मू, २४६-२२, उत्तरार्थ; यस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ. २४०.