________________
३७२ इसी प्रकार तिरुमल (उत्तर अर्काट जिला) के मन्दिर की निर्माण कलो में भी विकास की रूपरेखा जमी हुई है।
तिरुपत्तिकुण्रम् में गोपुरीली का एक विशाल दरवाजा है और विमानशैली के विविध गजपृष्ठ है, संगीत मण्डप और काष्ठ मूर्तियां हैं। इस मंदिर समूह में एक वर्षमान मंदिर भी है जो संभवतः प्राचीनतम होगा। यहां एक त्रिकूटबस्ती भी है जो मूलतः पमप्रभ और वासुपूज्य के मंदिरों का ही समूह है।
दक्षिणापथ में भी मुस्लिमों के आक्रमणों ने जैन स्थापत्यकला को भारी आघात पहुँचाया। फिर भी वह कला समूचे रूप में नष्ट नहीं की जा सकी। विजय नगर शासकों, सामंतों और राजदरबारियों ने अनेक जैन मंदिर और मूर्तियों का उदारतापूर्वक निर्माण किया । हम्पी (विजयनगर) के जैनमंदिरों में गणिगित्ति मंदिर उल्लेखनीय है जिसमें प्राचीन शैली के चतुष्कोणिक स्तम्भ हैं।
श्रवणबेलगोला में भी इस काल में अनेक जैन मंदिर बनवाये गये जो प्रायः होयसल शैली में निर्मित है। कर्नाटक में मूडब्रिदी भटकल, कार्कल, बेणर आदि जैन धर्म और कला के प्रधान केन्द्र इसी कालमें बने। इनमें मूडविदी का सहन स्तम्भवसदि स्थापत्य कला का सुंदर संयोजन है। इन स्थानों पर सर्वतोभद्र प्रतिमायें अधिक लोकप्रिय दिखाई देती हैं। कहीं कहीं गोपुरम् और द्रविड शैली के भी दर्शन होते हैं ।
महाराष्ट्र में हेमाडपंथी शैली का प्रचलन अधिक हुआ। यह शैली मूलतः उत्तर भारतीय शिखर शैली का परिष्कृत रूप है। इस शैली के जैन मुफा मंदिर नासिक जिले की त्रिंगलवाडी और चंदोर नामक स्थानों पर मिलते है। ये गुफा चतुष्कोणीय स्तम्भों पर आधारित है। महाराष्ट्र में ही वाशिम के समीप सिरपुर में स्थित अंतरिक्ष पार्श्वनाथ मंदिर उल्लेखनीय है जो लगभग १३ वीं शताब्दी का बना हुआ है । इसकी विन्यास रेखा तारकाकार है और पत्रावली युक्त पट्टियों का अलंकरण है। यह मंदिर दिगम्बर सम्प्रदाय का प्रतीत होता है।'
३. चित्रकला
चित्रकला भावाभिव्यक्ति का सुन्दरतम उदाहरण है। उसमें उपदेश भौर सन्देश देने की अनूठी क्षमता है । जैनाचार्यों न इस तथ्य को भलीभांति १. दक्षिण भारत, श्री के. आर. श्रीनिवासन, के.बी. सावर राजन, पी. आर. श्रीनिवासन,
प.t.t.बम्मकलक्ष्मी ।