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पर जैन मूर्तियां उटैंकित है। वहीं एक द्वितल गुफा मन्दिर भी है जिसमें एक मण्डप और लम्बा कक्ष है। यहां इस प्रकार के बनेक बनी मंदिर हैं।
राष्ट्रकूट काल में एलोरा जैन कला केन्द्र बना। यहां की शैलोत्कीर्ण जैन गुफा मन्दिरों की काफी संख्या है। उनमें इन्द्रसभा और जगन्नाय सभा विशेष उल्लेखनीय है। इन्द्रसभा में अनेक मन्दिर हैं। इसमें मानस्तम्भ, शासन देवी-देवताओं की मूर्तियां, गर्भगृह, महामण्डप, ता चित्रांकित स्तम्भ है। जगन्नाथ सभा उतनी व्यवस्थित नहीं। पर यहाँ भी गर्भगृह, मण्डप मूर्तियां आदि अलंकृत शैली में निर्मित है।
तेरापुर (धाराशिव) की गुफा भी उल्लेखनीय है। कनकामर ने अपने करकण्डुचरिउ (११ वीं शती) में इस गुफा का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है जिससे पता चलता है कि यह गुफा उस समय विशाल आकार की थी। करकंधु ने स्वयं यहां कुछ गुफाओं का निर्माण कराया था और पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी।
मनमाड रेलवे जंकसन से लगभग १५ किलो मीटर दूर अंकाई नामक स्टेशन के पास अंकाई-तंकाई नामक गुफा समूह है जो तीन हजार फुट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इसमें सात गुफायें हैं जिनमें बरामदे, मंडप, एवं गर्भगृह है। पावों में सिंह, द्वारपाल, विद्याधर, गजलक्ष्मी आदि की अनुकृतियां हैं। इनका समय लगभग ग्यारहवीं शताब्दी माना जा सकता है।
___ गुफा निर्माण कला धीरे धीरे समाप्त होती गई। प्रारम्भ में प्राकृतिक गुफायें होती थीं जिनका उपयोग साधना के लिए किया जाता था। उत्तरकाल में प्राकृतिक गुफाओं को गुफा मन्दिरों के रूप में परिणत किया जाने लगा। अधिकांश गुफायें गुफा मन्दिर बन गई। ऐसे अन्तिम गुफा मन्दिर ग्वालियर के किले में देखने मिलते हैं। इनका निर्माण १५ वीं शती में हुआ। इनमें विशाल मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। कुछ तो ६० फीट तक की मूर्तियां हैं। शिल्प सौष्ठव यहाँ अवश्य नहीं है। यहाँ अनेक गुफा समूह हैं। समूची पहाड़ी गुफाओं और मन्दिरों से बाकीर्ण है। सन् १९९३ का बना हुआ एक सास-बहु का जैन मन्दिर भी ग्वालियर किले में दृष्टव्य है। इन गुफाओं और मन्दिरों में यद्यपि शिल्प वैशिष्टय नहीं पर मूर्तियों की विशालता और सघनता देखते ही बनती है। प्रथम गुफा समूह में लगभग २५ विशाल मूर्तियां हैं। द्वितीय गुफा समूह में एक मूर्ति ६० फीट की स्थित है। इन गुफाओं में शिलालेख भी उत्कीर्ण है।