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षण्मुख
पाटल
पाताल किन्नर
गांधारी वैरोटी
किंपुरुष गरुड गंधर्व
सोलसा अनंतमती मानसी महामानसी
तिलक
व 44 44 ई. 3 4 5
आम्र
१२. वासुपूज्य मैसा १३. विमलनाप शूकर १४. अनंतनाथ सेही पीपल
(या बाज) १५. धर्मनाथ वज्र दधिपर्ण १६. शान्तिनाथ हरिण नन्दी १७. कुंथुनाथ छाग १८. अरहनाथ मत्स्य
(श्वे. नन्द्यावर्त) १९. मल्लिनाथ कलश अशोक २०. मुनिसुव्रत- कूर्म चम्पक
नाथ २१. नमिनाथ उत्पल बकुल २२. नेमिनाथ शंख
मेषशृंग २३. पार्श्वनाथ सर्प २४. महावीर सिंह शाल
कुबेर
वरुण
जया
भृकुटि
विजया
गोमेघ पाव मातंग
अपराजिता बहुरूपिणी कुष्माडी पद्मा सिद्धायिनी
धव
गायक
शासन देवी-देवता:
इनमें यक्ष और यक्षिणियों को शासन देवताओं और देवियों के रूप में स्वीकार किया गया । प्रारम्भ में प्रतिमा विधान में इनका कोई अस्तित्व नहीं था। मध्ययुग में तान्त्रिकता बढ़ी और जैनधर्म उससे अप्रभावित नहीं रहा । यहाँ यह ज्ञातव्य है कि इन शासन देवी-देवताओं की कल्पना तीर्थंकरों के रक्षक और सेवक के रूप में की गई। उनकी उपासना का कोई विधान नहीं था। उनकी संख्या में क्रमशः वृद्धि होती रही और लगभग नवीं शती में यह संख्या स्थिर हो सकी। यक्षिणियों में अम्बिका का प्राचीनतम उल्लेख आगमों में मिलता है। अतः ऐसा लगता है कि यक्ष-यक्षिणियों की स्थापना के पूर्व अम्बिका का अंकन होने लगा था। लगभग ५ वीं शती की अम्बिका की प्रतिमायें मिलती भी हैं। अम्बिका के साथ कुबेर की प्रतिमायें उपलब्ध होती हैं। जैसा हम जानते हैं, अम्बिका को नेमिनाथ की शासन देवी माना गया है। इन शासन देवियों के नामों में दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परागों में कुछ मतभेद हैं।