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वात्य शब्द का अर्थ है व्यक्ति अथवा समुदाय जो व्रतों का पालन करनेवाला है। जैन संस्कृति में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह व्रतों को पालनेवाले व्रती कहलाते हैं। ये व्रती दो प्रकार के हैं-अणुव्रती एवं महावती । देशविरत का पालन करनेवाले श्रावकों को " अणुवती" एवं संपूर्ण रूप से पालन करनेवाले मुनियों को "महाव्रती" कहते हैं। उपर वात्यों के जो लक्षण दियं गये हैं वे इन्हीं व्रतियों से सम्बद्ध हैं।
महन् मौर जन संस्कृति :
वातरसना, मुनि आदि के समान ऋग्वेद में जनों के लिए अर्हन् शब्द का भी प्रयोग हुआ है। श्रमण संस्कृति में इस शब्द को बहुत अधिक मह.व दिया गया है । ऋग्वेद में श्रमण नेता के लिए " अर्हन" शब्द का प्रयोग हुआ हैऔर उसका अर्थ पूज्य और योग्य किया है।
अर्हन विभषि सायकानि धन्वाहनिष्कं यजतं विश्वरूपम् । ___ अर्हन्निदं दयसे विश्वमम्बं न वा ओजीयो रुद्र त्वदस्ति ।' प्राचीन साहित्य में असुर और अर्हत् के बीच स्थापित सम्बन्धों का भी उल्लेख मिलता है। वहां असुर, नाग और द्रविड़ जातियों को सभ्य जातियों की श्रेणी में परिगणित किया है और साथ ही यह भी लिखा है कि वे जैनधर्म (अर्हत्) के अनुयायी बन गये थे। विष्णुपुराण में असुरों को मूलतः वैदिक धर्मानुयायी बताया है पर बाद में यह कह दिया गया है कि वे उससे असन्तुष्ट होकर आर्हत् धर्म में दीक्षित हो गये । दीक्षा देनेवाले का नाम वहाँ "मायामोह" दिया गया है। इस 'मायामोह' शब्द को यदि हम रूपक भी मानें तब भी उद्धरण के सन्दर्भ में कोई अन्तर नहीं आता ।।
वैदिक साहित्य में वणित देव-दानव युद्ध वैदिक आर्यों और मार्य-पूर्व जातियों के बीच हुए युद्ध का प्रतीक है।' असुरों को आर्य-पूर्व जाति के नेता इन्द्र ने पराजित किया फिर भी वे अडिग रहे। उन्होंने आत्मविद्या को पुनर्जागरित करने के लिए कठोर तप किया और फलस्वरूप उन्हें अपनी पराजय का दुःख भी नहीं हुआ।
१. ऋग्वेद. २.४.३३.१०. २. विष्णुपुराण, ३.१७.१८; मत्स्यपुराण २४.४३.४९. ३. विष्णुपुराण, ३.१८.२७.२९. ४. उत्तराध्ययनः एक समीक्षात्मक अध्ययन, भूमिका पृ. १८ ५. महामारत, शान्तिपर्व, २२७.१३-१५.