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________________ वैदिक साहित्य में व्रात्य संस्कृति एवं उसके तपस्वियों के उल्लेख आये हैं जिनका विशेष सम्बन्ध श्रमण संस्कृति से होना चाहिए। अथर्ववेद में तो समूचा एक प्रात्यकाण्ड ही है। प्रात्य को आचार्य सायण ने विद्वत्तम, महाधिकार, पुण्यशील, विश्व-सन्मान्य और ब्राह्मण-विशिष्ट कहा है। आगे उन्होंने उपनयनादि से हीन व्यक्ति को व्रात्य की संज्ञा दी है। साधारणतः ये व्रात्य यज्ञादि के अधिकारी नहीं हैं परन्तु उनमें जो विद्वान और तपस्वी हैं उन्हें परमात्मा तुल्य अवश्य कहा गया है । __ मनुस्मृति में भी व्रात्य को असंस्कृत एवं उपनयनादि व्रतों से परिभ्रष्ट बताया गया है ।' अथर्ववेद में कहा है कि उसने अपने पर्यस्न काल में प्रजापति को प्रेरणा दी। और फलतः प्रजापति ने स्वयं में स्वर्ण आत्मा को देखा। आचार्य हेमचन्द्र ने भी उक्त अर्थ ही प्रतिपादित कर आचार और संस्कारों से हीन व्यक्ति अथवा समुदाय को "वात्य" नाम से अभिहित किया है। पं. टोडरमलने मनुस्मृति से जैनधर्म विषयक उद्धरण दिये हैं जो आज के संस्करणों में उपलब्ध नहीं होते। तैत्तिरीय संहिता और ताण्डय ब्राह्मण जैसे वैदिक ग्रन्थों में इन्हीं व्रात्यों को सम्भवतः “यति" नाम से उल्लेखित किया है। वहां इन्द्र द्वारा इन यतियों को शृगालों एवं कुत्तों (शालाष्टकों) से नुचवाये जानेका भी उल्लेख है।' ऐतरेय ब्राह्मण में इन्द्र के इस कुकृत्य की घनघोर गर्हणा की गई। मनुस्मृति (दशम अध्याय) में लिच्छवी, नाथ, मल्ल आदि क्षत्रिय जातियों को वात्यों में परिगणित किया गया है । उक्त सभी उद्धरणों से यह स्पष्ट है कि वैदिक काल में मुनि, यति और वात्य समान रूप से वैदिक क्रियाकाण्ड के विरोध में खड़ी होनेवाली संस्कृति के पालनेवाले थे। यह वेद विरोधी संस्कृति निश्चित ही श्रमण संस्कृति के अतिरिक्त अन्य दूसरी संस्कृति नहीं हो सकती। १. अथर्ववेद, सायणभाष्य, १५.१.१.१. २. वही, सायणभाष्य, १५.१.१.१. ३. मनुस्मृति २.३९. ४. वही, १०.२०. ५. प्रात्य आसीदीयमान एवस प्रजापति समैरयत अथर्ववेद, १५.१.१.१. ६. वही, १५.१.१.३ ७. अभिषानचिन्तामणि कोश, ३.५१८. ८. तैत्तिरीय सं, २.४.९.२; ताण्ड्य ब्राह्मण, १४.२-२८.१८.१.९. ९. ऐतरेय ब्राह्मण, ७.२८.
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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