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पाश्चात्य दर्शन में मोक्ष :
पाश्चात्य दर्शन में आधुनिक दर्शनों का लक्ष्य ज्ञान की प्राप्ति रहा है पर यूनानी दर्शन का लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति रहा है। भारतीय दर्शनों के समान अफलातून ने सांसारिक इच्छाओं को ज्ञान के मार्ग में बाधक माना । वह सक्रिय जीवन और ज्ञानमय जीवन में अन्तर भी स्थापित करता है। लॉक ने जन्म-जात प्रत्ययों को ज्ञान का उद्गम स्थल माना है और अनुभव के आधार पर उसकी चरम प्राप्ति को स्वीकार किया है । वर्कले ने भी लगभग यही कहा है । बुद्धिवाद इसके विपरीत है । सुकरात, प्लेटो, अफलातून, डेकार्ते, लाइबनित्स, आदि दार्शनिक बुद्धि को ज्ञान की जननी मानते है । कान्ट परीक्षावादी है । वह अनुभववाद और बुद्धिवाद दोनों को अन्ध विश्वासी ( dogmatic) मानता है । पाश्चात्य दर्शन में ज्ञान की उत्पत्ति और विकास के ये विभिन्न सिद्धान्त दृष्टव्य है । इसी प्रकार बर्कले का प्रत्ययवाद, पेरी का यथार्थवाद, ब्रेण्टेनो का वस्तुवाद, लॉक का द्वैतवाद आदि जैसे सिद्धान्त भी मोक्ष सम्बन्धी विचार रखते है । लाप्लास, डार्विन, लामार्क और स्पेन्सर का यान्त्रिक विकासवाद, वर्गसां का प्रयोजनवाद, लाईड मार्गन का नव्योत्कान्तिवाद भी किसी सीमा तक इसपर विचार करते हैं । बर्कले, कान्ट, हैगल आदि अध्यात्मवादी दार्शनिक, तथा हघूम, डेकार्ते आदि आत्मवादी दार्शनिक भी मोक्ष तत्त्व पर विचार करता प्रतीत होता है, पर उस सीमा तक नहीं जिस सीमा तक भारतीय दर्शन ने मोक्ष की सार्वभौमिक व्याख्या की है ।
इस प्रकार जैन आचार की दष्टि में मोक्ष परम विशुद्धावस्था का प्रतीक है। जैनधर्म हर व्यक्ति को आत्मोत्कर्ष की चरम सीमा तक पहुँचने का अधिकारी मानता है। इसी सन्दर्भ में वह धर्म की सार्वभौमिक व्याख्या करता हुआ उसके लोकोपयोगी और लोकमङ्गलकारी तत्त्वों को भी प्रस्तुत करता है ।
१. षड्दर्शनसमुच्चय, कारिका ५२-५३.
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