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संस्कृत
प्राकृत
३. उमास्वाति (ल. द्वितीय शती) तत्वार्य सूत्र (सप्तम अध्याय) संस्कृत ४. समन्तभद्र (ल. चतुर्थ शती ई.) रत्नकरण्डश्रावकाचार संस्कृत ५. हरिभद्रसूरि (आठवीं शनी) सावयपण्णत्ति (?) तथा प्राकृत
सावयधम्मविहि
प्राकृत धर्मबिन्दु
संस्कृत ६. जिनसेन (८-९ वीं सती) आदिपुराण (पर्व ४०) संस्कृत ७. सोमदेव (१० वीं शती) यशस्तिलक चम्मू
(अष्टम अध्याय) ८. भावसेन (१० वीं शती) भावसंग्रह
प्राकृत अमितगति (१० वीं शती) अमितगतिश्रावकाचार संस्कृत १०. जिनेश्वरसूरि (११ वीं शती) षटस्थान प्रकरण
प्राकृत ११. अमृतचन्द्र (१०-११ वीं शती) पुरुषार्थ सिरपुपाय संस्कृत १२. बसुनन्दि (११-१२ वीं शती) वसुनन्दी श्रावकाचार १३. शान्तिसूरि (१२ वीं शती) धर्मरत्न प्रकरण
प्राकृत १४. आशाधर (१२३९.) सागार धर्मामृत
संस्कृत १५. जिनेश्वरसूरि (१२५६ ई.) श्रावकधर्मविधि
संस्कृत १६. गुणभूषण (१४-१५ वी गती) श्रावकाचार
संस्कृत १७. देवेन्द्रसूरि (१४ वीं शती) सड्ढजीयकप्प प्राकृत १८. लक्ष्मीचन्द्र (१५ वीं शती) सावयधम्मदोहा (?) अपभ्रंश १९. जिनमण्डनगणि (१५वीं शती) श्रावगुणविवरण संस्कृत २०. रत्नशेखर सूरि (१४४९ ई.) सड्ढविहि
प्राकृत २१. राजमल्ल (१७ वीं शती) लाटी संहिता
संस्कृत २२. कुन्धुसागर (२० वीं शती) श्रावकधर्मप्रदीप संस्कृत भावक परिमाषा :
__ श्रावकाचार का तात्पर्य है-गृहस्थ का धर्म। श्रावक (सावग, सावय) के अर्थ में उपासक और सागार जैसे शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। साधक व्यक्ति अध्ययन, मनन, चिन्तन अथवा परोपदेश से जब साधना की ओर चरण मोड़ता है वब हम उसे श्रावक कहने लगते है। उसके विचार और कर्म की विशा परम शान्ति और सुख की उपलब्धि की बोर रहती है। पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय बोर अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की स्थापना का भी उत्तरदायित्व