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है। इसमें कारण-कार्य का सम्बन्ध हता है। इन सभी सापों की हेमचन्द्राचार्य ने पांच भेदों में विभाजित किया है मनाव, मारक, कार्य, एकार्यसमवायी बौर विरोपी।
परार्यानुमान किसी अन्य व्यक्ति आदि के सहारे उत्पन्न होता है। वह भावात्मक बीर वचनात्मक दो प्रकार का होता है। ज्ञानात्मक परापानुमान वचनात्मक परानुमान पर बाधारित रहता है । इसलिए वचन को भी उपचारतः परार्थानुमान की श्रेणी में रख दिया जाता है।
स्वार्थानुमान के तीन अंग होते हैं-धर्मी, साध्य बोर साधन । परन्तु परार्यानुमान के अंगों के विषय में विशेष मतभेद है। सांस्य परानुमान के तीन अवयव मानते है-प्रतिज्ञा, हेतु और उदाहरण । मीमांसक उनमें 'उपनय' को और जोड़कर उनकी संख्या चार कर देते हैं। नैयायिकों ने 'निगवन' को भी अवयव माना और फलतः उनकी दृष्टि में परापानुमान के अवपदों की संख्या पांच हो गई। जैन दार्शनिक 'पन' और 'हेतु' को ही अधिक मावश्यक मानते है पर बोड दार्शनिक केवल 'हेतु' का प्रयोग करने के पक्ष में है।
अनुमान के पांच बनवव मानेसाते है-किता, हेतु, उदाहरण, उपनय और निन। साध्य विशिष्ट पटका कानकरलाल्पवित्रा है। इसे पस' भी कहा जाता है। बवासी की सिद्धि कलााहता है। "यह पर्वत अग्निवाला है" यह प्रतिमा का उदाहरण हुमा । सापनाकाल करता हेतु' है। जैसे यह पर्वत अग्निवाला है "क्योंकि इसमें धूम है।" बाहरण के PM को कोसष्टकिया, जाता है, जैसे-वो-गोंधमकाना होता है वह वह मानवाला होगसे खोईपर यह.साधम्याचा अन्वय दृष्टान्त है जो पोजगामिलान नहीं हो पानाह-एमवासाःभी नहीं होता. जेसे वामाव। ग्रह सामान्य सवा मतिरेकामयन्त है। प्रक्ष..में हेतु, का उपसंहार करना 'उपनय' है। सेनाहरपर्वत श्री उनी.कार.सहाला है। साध्य का फिरसे कपन फिर देर-निगमन' है। जैसे- पालिए. यह पर्वत अग्निवाला है। इन पांचों भासवॉकरमयोग करने परपरानुमान का पूरा सरूप इस.प्रकार होगायह पर्वत मग्निवाला है कि इस पर पूम है। यहाँ-वहाँ-धूम होता है जहांवहाँ साग्नि सेवी से रसोईपर जहाँ पर अग्नि होती है वहाँ धूम नहीं होता जैसे-पलाशय । स पर्वत में दम है।सवः सहा सरित है।
वस्तुतः बनुमान के इनका प्रतियोटिसे किया जाता है। सिपाहीजापतिकार के सात