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अन्तक्रियावाद (Inter-actionism) और अद्वैतवाद या समानान्तरवाद (parallelism) के अतिरिक्त मलवांश का अवसरवाद (occasionalism) उपपवाद (Epiphenomenalism), उपयोगितावाद (Pragmetic theory), नव्य यथार्थवाद (Neo-Realism), प्राणात्मकतावाद (Animistic theory) भादि अनेक सिद्धान्त है जो मन की व्याख्या करते हैं तथा मन और शरीर को सम्बन्ध स्पष्ट करते हैं। मनु और स्कन्ध:
पुद्गल के दो प्रकार होते हैं-अणु और स्कन्ध । अणु अत्यन्त सूक्ष्म और सतत परिणममधील होता है। उसका आदि, मध्य और अन्त एक ही स्वरूप वाला अविभागी अंश होता है। सूक्मता के कारण वह इन्द्रियों द्वारा अग्राहप है। स्कन्ध स्थूल और पाहणीय होता है । परमाणु स्कन्धों के भेदपूर्वक उत्पन्न होता है अतः वह कारण के साथ ही कार्यरूप भी है ।उसमें स्नेह आदि मुण उत्पन और विनष्ट होते हैं । अतः कथञ्चित् वह अनित्य भी है ।
परमाणु निरवयव है अतः उसमें एक रस, एक गन्ध और एक वर्ण है। शीत उष्ण में से कोई एक तथा स्निग्ध और रूक्ष में से कोई एक, इस तरह अविरोधी दो स्पर्श होते हैं। गुरु, लघु, मृदु और कठिन स्पर्श परमाणु में नहीं पाये जाते क्योंकि वे स्कन्धगत हैं। शरीर इन्द्रिय और महाभूत आदि स्कन्ध स्प कार्यों से परमाणु का अस्तित्व सिद्ध होता है । वह अविभागी होता है। अणु-परमाणु के चार प्रकार होते हैं-द्रव्य (पुद्गल), क्षेत्र (आकाश), काल (समय) और भाव (गुण) । इनके और भी भेद-प्रभेद मिलते हैं।
प्रमाणुगों के परस्पर बन्ध को स्कन्ध कहते हैं । वे तीन प्रकार के हैंस्कन्ध, स्कन्धदेश और स्कन्धप्रदेश । स्कन्ध के, मर्षभाग को स्कन्धदेश मोर स्कन्धदेश के बर्षभाग को स्कन्धप्रदेश कहा जाता है। पृथ्वी, जल, अग्नि, बायु मावि स्कन्द के ही भेद हैं। स्पर्शादि और शब्दादि उसी की पर्याय हैं। इन्हीं स्कन्धों के परस्पर भेद, संघात और भेदसंघात से द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी, अनन्तप्रदेशी बादि स्कन्धों की उत्पत्ति होती है । ये स्कन्ध कमी दिखाई देते हैं और कभी नहीं । परमाणुओं के परस्पर बन्ध में स्निग्धता और रूक्षता कारण होती है और इन्हीं कारणों से पुद्गल अथवा सृष्टि समुदाय का सृजन होता है। आधुनिक विज्ञान भी इसे स्वीकार करता है।
१. भगवतीशतक, २.१०.१६ २. अन यन मोर बाधुनिक विज्ञान, प. २०७२.