________________
भानुचागणि, दिग्विजय, जिनकृपाचंद्रसूरि आदि ऐसे ही प्रमुख आचार्य कहे जा सकते हैं जिनपर जैन विद्वानों ने संस्कृत काव्य लिखे हैं।
जैनाचायों ने ऐतिहासिक महापुरुषों पर भी संस्कृत महाकाव्य का सृजन किया है इससे उनके ऐतिहासिक ज्ञान का पता चलता है। हेमचन्द्र के कुमारपाल मार द्वाश्रय महाकाव्य (संस्कृत-प्राकृत मिश्रित), अरिसिंह का सुकृत संकीर्तन (वि. सं. १२७८), बालचंद्रसूरि का वसंतविलास (वि.सं.१३३४), नवचंद्रसूरि का हम्मीर महाकाव्य (वि.सं. १४४०), जिनहर्षगणि का वस्तुपाल चरित (वि. सं. १४९७), सर्वानंद का जगडूचरित (वि.सं. १३५०), प्रभाचंद्र का प्रभावकचरित (वि. सं. १३३४), तथा मेरुतुंगसूरि का प्रबन्ध चितामणि (वि.सं.१३६१), आदि ग्रन्थ विशेष उल्लेखनीय हैं। इत ग्रंथों में वर्णित राजामों ने जैनधर्म के प्रचार-प्रसार में पर्याप्त योगदान दिया है । इसी प्रकार अनेक प्रशस्तियां, पट्टावलियां गुर्वावलियां, तीर्थमालायें, शिलालेख, मूर्तिलेख आदि भी संस्कृत-भाषा में निबद्ध हैं।
६. कथा साहित्य जैनाचार्यों ने संभवतः कथा ग्रंथों की सर्वाधिक रचना की है । यद्यपि ये कपायें घटना-प्रधान अधिक हैं परन्तु उनमें एक विशेष लक्ष्य दिखाई देता है । यह लक्ष्य है-आध्यात्मिक चरम साधना के उत्कर्ष की प्राप्ति । इस संदर्भ में लेखकों ने बागमों में वर्णित कथाओं का आश्रय तो लिया ही है, साथ ही नीति कयामों की पृष्ठभूमि में लौकिक कथाओं का भी भरपूर उपयोग किया है। हरिषेण का वृहत्कथा कोष (बि. सं. ९५५), प्रभाचंद्र तथा नेमिचंद्र के कथाकोश, सोमचंद्रगणि का कथा महादधि (वि. सं. १५२०) शुभशीलगणि का प्रबंध पंचशती, सकलकीति आदि के व्रतकथाकोष, गुणरत्नसूरि का कयार्णव, अनेक कवियों के पुण्याश्रव कथाकोश आदि रचनायें श्रेष्ठ संस्कृत काव्य को प्रस्तुत करती हैं । इनमें तत्कालीन प्रचलित अथवा कल्पित कथाओं को जैन धर्म का पुट देकर निबद्ध किया है । धर्माभ्युदय, सम्यक्त्वकौमुदी, धर्मकल्पद्रुम, धर्मकथा, उपदेशप्रासाद, सप्तव्यसन कथा आदि कथात्मक ग्रंथों में व्रत पूजादि से सम्बद्ध कथाओं का संकलन है । धर्मपरीक्षा नाम के भी अनेक कथा ग्रंथ इसी विषय से संबद्ध मिलते हैं । सिषि की उपमितिभवप्रपञ्चकथा (वि.सं. ९६२) तथा नागदेव का मदनपराजय (लगभग १५ वीं शती) जैसे कुछ अन्य ऐसे भी प्राप्त होते हैं जो रूपक शैली में कर्मकथा कहने का उपक्रम करते हैं ।
धर्म के किसी पक्ष को प्रस्तुत करने के लिए साहित्य अथवा इतिहास से किसी व्यक्ति का परित उश लिया गया और उसे मरने ढंग से प्रस्तुत कर