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अवरा पज्जाय दिदि खणमेत्तं होदि तं च सममोति । दोण्हमणूणमदिक्कमकाल पमाणु हवे सो दु ।५७२।।'
सर्व द्रव्यो के पर्याय की जघन्य स्थिति ठहरने का समय एक क्षण मात्र होता है, इसी को 'समय' कहते हैं। दो परमाणुप्रो को अतिक्रमण करने के काल का जितना प्रमाण है, उसको समय कहते हैं अथवा अाकाश के एक प्रदेश पर स्थित एक परमाणु मंदगति द्वारा समीप के प्रदेश पर जितने काल मे प्राप्त हो, उतने काल को एक समय कहते है।
____ असख्यात कालमानो की गणना उपमा के द्वारा की गयी है । इसके मुख्य दो भेद हैं-पल्योपम व सागरोपम । वेलनाकार खड्डे या कुए को पल्य कहा जाता है । एक चार कोस लम्बे, चौडे व गहरे कुए मे नवजात यौगलिक शिशु के केशों को जो मनुष्य के केश के २४०१ हिस्से जितने सूक्ष्म हैं, असल्य खण्ड कर ठूस-ठूस कर भरा जाये । प्रति १०० वर्ष के अन्तर से एक-एक केश खण्ड निकालते-निकालते जितने काल मे वह कुत्रा खाली हो, उतने काल को एक पल्य कहा गया है। दस क्रोडाकोड (एक करोड को एक क्रोड से गुणा करने पर जो गुणनफल आता है, उसे क्रोडाकोड कहा गया है) पल्योपम को एक सागरोपम व २० क्रोडाफोडी सागर को एक कालचक्र तथा अनन्त काल चक्र को एक पुद्गल परावर्तन कहते हैं।
समा काल के विभाग को कहते हैं तथा 'सु' और 'टु' उपसर्ग समा के साथ लगने से समा के दो रूप हो जाते हैं-सुसमा और दुसमा । स का ख या प होने से सुखमा और दुखमा हो जाते हैं। सुखमा का अर्थ है अच्छा काल और दुखमा का अर्थ है बुरा काल । काल को सर्प से उपमित किया गया है । सर्प का व्युत्पत्ति लभ्य अर्थ है गति । काल की गति के विकास और हास को ध्यान मे रखकर काल के दो भेद किये गये हैं - उत्सर्पिणी व अवपिणी । जिम काल मे आयु, शरीर, बल आदि की उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाय वह उत्सर्पिणी और जिस काल मे आयु. शरीर, वल आदि की उत्तरोत्तर हानि होती जाय, वह अवसर्पिणी काल है। उत्सर्पिणी काल चक्राद्धं मे समय क्षेत्र की प्रकृतिजन्य सभी प्रतिक्रियाएं क्रमश निर्माण और विकास की ओर अग्रसर होती हुई प्रगति की चरम सीमा को प्राप्त होती हैं । उसके बाद अवसर्पिणी काल चक्रार्द्ध के प्रारम्भ होने पर प्रकृति१-गोम्मटमार, जीवकाण्ड
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