________________
निकलने वाली नारगी रंग के प्रकाश के तरंग - श्रायामो की निर्दिष्ट सख्याओ ने ले लिया है । अत अब एक मीटर, क्रिप्टन के १६५०,७६३ ७३ तर आयामों के बराबर होता है । प्रकाश किरण की गति एक सैकिण्ड मे ३,००००० किलोमीटर है । एक किलोमीटर मे १००० मीटर होते हैं अत. प्रकाश किरण एक सैकिण्ड मे ३००००० x १००० x १६५०७७३७३= ४६५२२६११६०००००००० क्रिप्टन आयामो के बराबर चलता है । अत उसे एक आयाम को पार करने मे लगभग एक सैकिण्ड का दसवां भाग लगता है और टेलीपैथी विशेषज्ञो का कथन है कि मन की तरगो की गत प्रकाश की गति से कितना ही गुना अधिक है । अत. मन की तरग को क्रिप्टन के एक आयाम को पार करने मे तो शखवे भाग से भी कितने ही गुना अधिक कम समय लगता है । इस प्रकार एक सैकिण्ड मे असख्यात समय होते है, यह कथन वैज्ञानिक दृष्टि से भी युक्तियुक्त प्रमाणित होता है ।
समय की सूक्ष्मता का कुछ अनुमान व्यावहारिक उदाहरण टेलीफोन से लगाया जा सकता है । कल्पना कीजिये कि श्राप दो हजार मील दूर बैठे हुए किसी व्यक्ति से टेलीफोन से बात कर रहे है । आपकी ध्वनि विद्युत तरगो मे परिरणत हो तार के सहारे चल कर दूरस्थ व्यक्ति तक पहुचती है और उसकी ध्वनि द्याप तक । इसमे जो समय लगा, वह इतना कम है कि आपको उसका अनुभव तक नही हो रहा है और ऐसा लगता है मानो कुछ भी समय न लगा हो और आप उस व्यक्ति से समक्ष ही बैठे बातचीत कर रहे हो । चार हजार मील तार को पार करने मे तरग को लगा समय भले ही आपको प्रतीत न हो रहा हो फिर भी समय तो लगा ही है । कारण तरग वहाँ एक दम ही नही पहुँची है बल्कि एक-एक मीटर और एक-एक मिलीमीटर को पार करने मे जितना समय लगा, उसकी सूक्ष्मता का अनुमान लगाइये । आप चाहे अनुमान लगा सके या न लगा सकें, परन्तु तरग को एक मिलीमीटर तार पार करने मे समय तो लगा ही है । जैन दर्शन मे वर्णित समय इससे भी असख्यात गुना अधिक सूक्ष्म है ।
"
'समय' नापने की विधि मे भी जैन दर्शन व विज्ञान जगत् मे आश्चर्यजनक समानता है । दोनो ही गति क्रिया रूप स्पदन के माध्यम से समय का परिमाण निश्चित करते हैं, यथा
७८