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लोगागासपदे से एक्के एक्के एक्के जेहिया हु ऐक्केक्के । ग्यरणारण ससीइव ते कालाणु असख दवरिण ।५८८।। एगपदेशो अणुस्सहते ।५८५।। लोगपदेसप्पमा कालो।५८७।।
-गोम्मटसार, जीवकाण्ड अर्थात् काल के अणु रत्न राशि के समान लोकाकाश के एक-एक प्रदेश मे एक-एक स्थित हैं। पुद्गल द्रव्य का एक अणु एक ही प्रदेश मे रहता है । लोकाकाश के जितने प्रदेश हैं, उतने ही काल द्रव्य हैं।
दोनो ही परम्परागो द्वारा प्रतिपादित काल विषयक विवेचन मे जो मतभेद दिखाई देता है, वह अपेक्षाकृत ही है । वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व-अपरत्व काल के लक्षण भी हैं और पदार्थ की पर्याये भी हैं और यह नियम है कि पर्याय पदार्थ रूप ही होती हैं, पदार्थ से भिन्न नही । अत. इस दृष्टि से काल को स्वतन्त्र द्रव्य न मानकर औपचारिक द्रव्य मानना ही उचित है। ___कालाणु भिन्न-भिन्न हैं । प्रत्येक पदार्थ परमाणु व वस्तु से कालाणु आयाम रूप से सपृक्त है तथा पदार्थ की पर्याय-परिवर्तन मे अर्थात् परिणमन व घटनाओ के निर्माण मे सहकारी निमित्त कार्य के रूप में भाग लेता है । यह नियम है कि निमित्त उपादान से भिन्न होता है। अतः इस दृष्टि से काल को स्वतन्त्र द्रव्य मानना उचित ही है।
उपर्युक्त दोनो परम्परायों की मान्यताओ के समन्वय से यह फलितार्थ निकलता है कि काल एक स्वतन्त्र सत्तावान द्रव्य है। प्रत्येक पदार्थ से सपृक्त है । पदार्थ मे की क्रियामात्र मे उसका योग है। अाधुनिक विज्ञान भी काल के विषय मे इन्ही तथ्यो को प्रतिपादित करता है । इस शताब्दी के महान् वैज्ञानिक आइन्सटीन ने सिद्ध किया है कि "देश और काल मिलकर एक हैं" और वे चार डायमेशनो (लम्वाई, चौडाई, मोटाई व काल) मे अपना काम करते हैं। विश्व के चतुरायाम गहरण मे दिक्काल की स्वाभाविक अतिव्याप्ति से गुजरने के प्रयत्न लाघव का फल ही मध्याकर्षण होता है। देश और काल परस्पर स्वतन्त्र सत्ताएँ हैं । रिमैन की ज्योतिमिति और आइन्सटीन के सापेक्ष्यवाद ने जिस विश्व की कल्पना को जन्म दिया है, उसमे देश और काल परस्पर संपृक्त है । दो
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