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दिक और काल की अवधारणा
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जैन दर्शन मे विश्व अनादि, अनन्त माना गया है
।
के रूप में ईश्वर की प्ररूपणा नही की गयी है। विश्व के मे 'लोक' शब्द प्रयुक्त हुत्रा है । जो देखा जाता है वह लोक है - 'जो लोक्कइ से लोए ।" लोक की व्याख्यात्मक परिभाषा करते हुए कहा गया है जिसमें ६ प्रकार के द्रव्य हैं, वह लोक है—
इन ६ द्रव्यों के नाम है
धम्मो धम्मो आगास, कालो पुग्गल -जन्तवो । एस लोगोत्ति पन्नत्तो, जिरोहि वरदसिहि ॥
(१) धर्मास्तिकाय (गति - सहायक द्रव्य ) (२) अधर्मास्तिकाये ( स्थिति - सहायक द्रव्य ) (३) आकाशास्तिकाय (आश्रय देने वाला द्रव्य ) (४) काल (समय)
(५) पुद्गलास्तिकाय ( मूर्त जड़ पदार्थ )
(६) जीवास्तिकाय ( चैतन्यशील आत्मा )
१- भगवती सूत्र ५-६-२२५ २ – उत्तराध्ययन सूत्र २८ /७
यहाँ सृष्टिकर्ता लिए जैन दर्शन
इन द्रव्यो की सह-अवस्थिति लोक है । इन ६ द्रव्यो मे से काल को छोड़कर शेष ५ द्रव्य अस्तिकाय कहे गये हैं । अस्ति का अर्थ होता है प्रदेश
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