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________________ दिक और काल की अवधारणा ७ जैन दर्शन मे विश्व अनादि, अनन्त माना गया है । के रूप में ईश्वर की प्ररूपणा नही की गयी है। विश्व के मे 'लोक' शब्द प्रयुक्त हुत्रा है । जो देखा जाता है वह लोक है - 'जो लोक्कइ से लोए ।" लोक की व्याख्यात्मक परिभाषा करते हुए कहा गया है जिसमें ६ प्रकार के द्रव्य हैं, वह लोक है— इन ६ द्रव्यों के नाम है धम्मो धम्मो आगास, कालो पुग्गल -जन्तवो । एस लोगोत्ति पन्नत्तो, जिरोहि वरदसिहि ॥ (१) धर्मास्तिकाय (गति - सहायक द्रव्य ) (२) अधर्मास्तिकाये ( स्थिति - सहायक द्रव्य ) (३) आकाशास्तिकाय (आश्रय देने वाला द्रव्य ) (४) काल (समय) (५) पुद्गलास्तिकाय ( मूर्त जड़ पदार्थ ) (६) जीवास्तिकाय ( चैतन्यशील आत्मा ) १- भगवती सूत्र ५-६-२२५ २ – उत्तराध्ययन सूत्र २८ /७ यहाँ सृष्टिकर्ता लिए जैन दर्शन इन द्रव्यो की सह-अवस्थिति लोक है । इन ६ द्रव्यो मे से काल को छोड़कर शेष ५ द्रव्य अस्तिकाय कहे गये हैं । अस्ति का अर्थ होता है प्रदेश ६६
SR No.010213
Book TitleJain Darshan Adhunik Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1984
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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