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अपनाकर जीवन को भारभूत बनाया जाए। 'भत्त-पाण-विच्छेद' अतिचार से यह तथ्य गृहीत होता है कि व्यक्ति अपना व्यापार इस प्रकार करे कि उससे किसी का भोजन व पानी न छीना जाए।
सत्यारणुव्रत मे सत्य के रक्षण और असत्य से बचाव पर बल दिया गया है। कहा गया है कि व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए कन्नालिये अर्थात् कन्या के विषय मे, गवालिए अर्थात् धरोहर के विषय मे, भोमालिए अर्थात् भूमि के विषय मे, णासावहारे अर्थात् धरोहर के विषय मे झूठ न बोले कूडएसक्खिजे अर्थात् झूठी साक्षी न दे। इसी प्रकार सत्यव्रत के अतिचारो से बचने के लिए कहा गया है कि बिना विचारे एकदम किसी पर दोपारोपण न करे, दूसरो को झूठा उपदेश न दे, झूठे लेख, झूठे दस्तावेज न लिखे, न झूठे समाचार या विज्ञापन आदि प्रकाशित करायें और न झूठे हिसाब आदि रखे।
अस्तेय व्रत की परिपालना का, साधन शुद्धता की दृष्टि से विशेष महत्त्व है। मन, वचन और काय द्वारा दूसरे के हको को स्वय हरण करना और दूसरो से हरण करवाना चोरी है। आज चोरी के साधन स्थूल से सूक्ष्म वनते जा रहे है । सेव लगाने, डाका डालने, ठगने, जेब काटने वाले ही चोर नही हैं बल्कि खाद्य वस्तुओ मे मिलावट करने वाले, एक वस्तु बताकर दूसरी लेने-देने वाले, कम तोलने और कम नापने वाले, चोरो द्वारा हरण की हुई वस्तु खरीदने वाले, चोरो को चोरी की प्रेरणा करने वाले. झूठा जमा खर्च करने वाले, जमाखोरी करके बाजारो मे एकदम से वस्तु का भाव घटा या बढा देने वाले, झूठे विज्ञापन करने वाले, अवैध रूप से अधिक सूद पर रुपया देने वाले भी चोर हैं। भगवान महावीर ने अस्तेय व्रत के अतिचारो मे इन सबका समावेश किया है। इन सूक्ष्म तरीको की चौर्य वृत्ति के कारण ही आज मुद्रा-स्फीति का प्रसार है और विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। एक ओर काला धन बढता जा रहा है तो दूसरी ओर गरीव अधिक गरीब बनता जा रहा है। अर्थव्यवस्था के सन्तुलन के लिए आजीविका के जितने भी साधन हैं, पूजी के जितने भी स्रोत है उनका शुद्ध और पवित्र होना आवश्यक है।
इसी सन्दर्भ मे भगवान् महावीर ने ऐसे कार्यों के द्वारा आजीविका के उपार्जन का निषेध किया है जिनसे पाप का भार बढता है और समाज