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उपर्युक्त चारो सूत्रो मे जिन मर्यादाश्रो की बात कही गयी है वे व्यक्ति की अपनी इच्छा और शक्ति पर निर्भर हैं। महावीर ने यह नही कहा कि आवश्यकतायें इतनी-इतनी सीमित हो। उनका सकेत इतना भर है कि व्यक्ति स्वेच्छापूर्वक अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार आवश्यकताये सीमित करे, इच्छाये नियत्रित करे क्योकि यही परम शान्ति और आनन्द का रास्ता है। आज की जो राजनैतिक चिन्तन धारा है उसमे भी स्वामित्व और आवश्यकताओ को नियत्रित करने की बात है। यह नियमन, नियत्रण और सोमाकन विविध कर पद्धतियो के माध्यम से कानून के तहत किया जा रहा है । यथा-आयकर, सम्पत्तिकर, भूमि और भवन कर, मृत्यु कर और नागरीय भूमि सीमाकन एवं विनियमन अधिनियम (अरवन लैण्ड सीलिंग एण्ड रेग्युलेशन) एक्ट ।
भगवान् महावीर ने अपने समय मे, जबकि जनसख्या इतनी नही थी, जीवन मे जटिलताये भी कम थी, तब यह व्यवस्था दी थी। उसके बाद तो जनसख्या मे विस्फोटक वृद्धि हुई है, जीवन पद्धति जटिल बनी है, आथिक दवाव बढा है, आर्थिक असमानता की खाई विस्तत हई है, फिर भी लगता है कि महावीर द्वारा दिया गया समाधान आज भी अधिक व्यावहारिक और उपयोगी है क्योकि कानून के दबाव से व्यक्ति बचने का प्रयत्न करता है, पर स्वेच्छा से जो आत्मानुशासन आता है, वह अधिक प्रभावी बनता है।
३. साधन-शुद्धि पर बल-भगवान महावीर ने आवश्यकताओ को सोमित करने के साथ-साथ जो आवश्यकताये शेष रहती हैं, उनकी पूर्ति के लिए भी साधन शुद्धि पर विशेप,बल दिया है। महात्मा गाधी भी साध्य की पवित्रता के साथ-साथ साधन की पवित्रता को महत्त्व देते थे । अहिंसा, सत्य, अस्तेय आदि व्रत, साधन की पवित्रता के ही प्रेरक और रक्षक है। इन व्रतो के पालन और इनके आतिचारो से बचने का जो विधान है, वह भाव-शुद्धि का सूचक है। अपनी आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए व्यक्ति को स्थूल हिंसा से बचना चाहिये। उसे ऐसे नियम नही बनाने चाहिए जो अन्याय युक्त हो न ऐसी सामाजिक रूढियो के बन्धन स्वीकार करने चाहिए जिनसे गरीबो का अहित हो। 'अहिभार' (अति भार) अतिचार इस बात पर बल देता है कि अपने अधीनस्थ कर्मचारियो से निश्चित समय से अधिक काम न लिया जाय, न पशुओ, मजदूरो आदि पर अधिक वोझ लादा जाए और न बाल-विवाह, अनमेल विवाह और रूढियो को