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धर्मों तथा ग्राम स्थविर, नगर स्थविर, राष्ट्र स्थविर, प्रशास्ता स्थविर, कुल स्थविर, गण स्थविर, सघ स्थविर जैसे धर्मनायको की भी व्यवस्था की गई है। ____इस विन्दु पर आकर "जन" और "समाज" परस्पर जुडते हैं और धर्म मे निवृत्ति-प्रवृत्ति, त्याग-सेवा और ज्ञान-क्रिया का समावेश होता है।
यद्यपि यह सही है कि धर्म का मूल केन्द्र व्यक्ति होता है क्योकि धर्म आचरण से प्रकट होता है पर उसका प्रभाव समूह या समाज मे प्रतिफलित होता है और इसी परिप्रेक्ष्य मे जनतात्रिक सामाजिक चेतना के तत्त्वो को पहचाना जा सकता है । कुछ लोगो की यह धारणा है कि जनतात्रिक सामाजिक चेतना की अवधारणा पश्चिमी जनतन्त्र-यूनान के प्राचीन नगर राज्य और कालान्तर मे फास की राज्य क्राति की देन है। पर सर्वथा ऐसा मानना ठीक नही । प्राचीन भारतीय राजतत्र व्यवस्था में आधुनिक इंगलैण्ड की भाति सीमित व वैधानिक राजतत्र से युक्त प्रजातत्रात्मक शासन के वीज विद्यमान थे । जन सभाओ और विशिष्ट आध्यात्मिक ऋषियो द्वारा राजतत्र सीमित था। स्वयं भगवान् महावीर लिच्छिवी गणराज्य से सम्बन्धित थे । यह अवश्य है कि पश्चिमी जनतत्र और भारतीय जनतत्र की विकास-प्रक्रिया और उद्देश्यो मे अन्तर रहा है, उसे इस प्रकार समझा जा सकता है :१ पश्चिम मे स्थानीय शासन की उत्पत्ति केन्द्रीय शक्ति से हुई है जबकि
भारत मे इसकी उत्पत्ति जन समुदाय से हुई है 1/ २. पाश्चात्य जनतात्रिक राज्य पूजीवाद, उपनिवेशवाद और साम्राज्य
वाद के वल पर फले फूले हैं । वे अपनी स्वतन्त्रता के लिए तो मर मिटते है पर दूसरे देशो को राजनैतिक दासता का शिकार बना कर उन्हे स्वशासन के अधिकार से वचित रखने की साजिश करते है । पर भारतीय जनतत्र का रास्ता इससे भिन्न है । उसने आर्थिक शोषण और राजनैतिक प्रभत्व के उद्देश्य से कभी बाहरी देशो पर अाक्रमण नही किया । उसकी नीति शातिपूर्ण सहअस्तित्व और
अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की रही है। १ यानांग सूत्र, दसवा ठाणा ।