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भगवान महावीर ने धर्म का जो स्वरूप प्रतिपादित किया वह ढाई हजार वर्षों के बाद आज भी उपयोगी और प्रासगिक लगता है । महावीर के बाद सभ्यता का रथ तेजी से आगे बढा है। हिंसा, चोरी, झूठ, असयम और परिग्रह की समस्या पहले से कही अधिक जटिल और सूक्ष्म वनी है । मानव-शोपण के नये-नये तरीके आविष्कृत हुये हैं, जीवन अधिक अशात, सत्रस्त और कु ठित वना है। बहिर्जगत की अन्धदौड और भौतिक उपकरणो की प्रगति ने अधिक भय और असुरक्षा का भाव पैदा किया है । परिणामत हृदय छोटा और कमजोर बन गया है। समय और स्थान की दूरी पर विजय पाकर भी मनुष्य अपने आपसी सम्बन्धो मे पहले से अधिक दूरी और तनाव महसूस करने लगा है। आज उसके चारो ओर विभिन्न प्रकार की समस्याएँ मुह वाये खडी हैं । विभिन्न आर्थिक और राजनैतिक चिन्तको ने जो विचार दिये है, उससे लौकिक समृद्धि का क्षितिज तो विस्तृत हुआ है पर आत्मिक शाति सिकुड गयी है । ऐसी स्थिति मे मनुष्य को शात, सुखी और सतुष्ट बनाने की दिशा अव भी कही दिखाई दे सकती है तो महावीर के विचार-चिन्तन मे। इस दृष्टि से वर्तमान युग की समस्यानो पर यहा विचार करना अप्रासगिक न होगा।
___ वर्तमान युग की प्रमुख समस्याएं और जैन दर्शन
वर्तमान युग की प्रमुख समस्याओ को निम्नलिखित रूपो मे देखा जा सकता है
१. युद्ध और हिंसा की समस्या ससार दो विश्व महायुद्धो का विनाश देख चुका है। तीसरे महायुद्ध की तलवार क्षणप्रतिक्षण मानवता के सिर पर लटकी हुई अनुभूत होती है। इसका कारण है साम्राज्य-विस्तार की भावना, पूजी की लालसा और यशोलिप्सा। प्रत्येक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर अधिकार कर अपना आर्थिक और राजनैतिक प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है। इसीलिये अस्त्र-शस्त्रो की होड लगी हुई है। भगवान् महावीर के समय मे धर्म के नाम पर जो हिंसा होती थी, वह अब अर्थ-सग्रह के नाम पर अधिक उग्र वनकर सामने आ रही है । प्राणविक और रासायनिक परीक्षणो के नाम पर निरीह पशु-पक्षियो की हिंसा के दृश्य रोगटे खडा कर देने वाले हैं । सौन्दर्य-प्रसाधनो के नाम पर खरगोश, ह्वेल मछली, सिवेट, भेड,
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