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एव आध्यात्मिक जगत् मे विशेष चर्चित रहे हैं । आचार्य श्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार शोध प्रतिष्ठान, जयपुर के मानद निदेशक के रूप मे आपने हस्तलिखित ग्रथो का दोहन कर जैन साहित्य की अज्ञात सम्पदा को उजागर करने व शोध की नयी दिशाएँ उद्घाटित करने मे अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है । अखिल भारतीय जैन विद्वत् परिषद् के महामंत्री के रूप मे देश के विभिन्न क्षेत्रो मे विविध विषयों पर सगोष्ठियो का सयोजन - निर्देशन कर समाज मे एक नयी बौद्धिक चेतना की लहर प्रवाहित की है । आपका अध्ययन व्यापक, चिन्तन गहन और अभिव्यक्ति स्पष्ट व प्रभावशील है ।
प्रस्तुत पुस्तक मे डॉ भानावत के १२ निबन्ध सकलित हैं जो विविध विषयो पर समय-समय पर आयोजित अखिल भारतीय स्तर की सगोष्ठियो मे प्रस्तुत किये गये हैं । इन निबन्धो मे डॉ भानावत ने जैनदर्शन मे निहित क्राति चेतना, स्वतत्रता, समानता, लोककल्याण, सास्कृतिक समन्वय और भावनात्मक एकता, आत्म-विजय, विश्व मैत्री भाव, चित्त शुद्धि, धर्म- जागरणा, ध्यान योग जैसे तत्त्वो की आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के सन्दर्भ मे व्यक्ति और समाज के धरातल पर व्यापक दृष्टिकोण से विवेचना - विवृति की है । आपकी भाषा प्राजल और परिष्कृत है तथा भावाभिव्यक्ति मे गाभीर्य होते हुए भी अपने ढग का सारल्य है जो कथ्य को बोझिल व दुरुह नही बनाता ।
डॉ भानावत ने अपने निबन्धो मे यथा प्रसग आगमिक उद्धरणो का भी उपयोग किया है। उनके विवेचन-विश्लेषरण मे उनकी अपनी दृष्टि रही है । यह आवश्यक नही कि सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल की लेखक के विचारो से सहमति हो ही ।
डॉ भानावत ने अपने निवन्धो को पुस्तक रूप मे प्रकाशित करने की मण्डल को अनुमति प्रदान की, एतदर्थं हम उनके श्राभारी हैं ।
आशा है, यह पुस्तक जैनदर्शन को आधुनिक परिप्रेक्ष्य मे समझनेपरखने में विशेष सहायक बनेगी । इसी भावना के साथ ।
उमरावमल ढड्ढा
अध्यक्ष
टीकमचन्द हीरावत मत्री
सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर
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