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जैन दर्शन
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काल अंतर्मुहूर्त्त है। तथा जो उत्तम संहनन को धारण करने वाले हैं उन्हीं के उत्कृष्ट काल तक ध्यान होता है । वज्रवृषभनाराच, वज्रनाराच और नाराच ये तीन उत्तम संहनन हैं । साक्षात् मोक्ष प्राप्त करने वाला ध्यान प्रथम संहनन वाले के ही होता है ।
इस ध्यानके चार भेद हैं- आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्म्यध्यान और शुक्लध्यान । इनमें से आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान ये दोनों ध्यान संसार के कारण हैं । धर्म्यध्यात परंपरा से मोक्षका कारण है और शुक्र ध्यान साक्षात् मोक्षका कारण है ।
श्रार्त्तध्यान
ऋत शब्द से बना है । ऋत शब्दका अर्थ दुःख है । जो ध्यान किसी दुःख से उत्पन्न होता है उसको आर्त्तध्यान कहते हैं । इसके चार भेद हैं ।
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उसको
पहलाआर्त्तध्यान - जो पदार्थ अच्छा न लगे, दुखदायी हो मनोज्ञ या अनिष्ट कहते हैं । किसी अनिष्ट पदार्थ के संयोग होने पर उसको दूर करने के लिये बार बार चितवन करना पहला अनिष्ट संयोगज आर्त्तध्यान कहलाता है ।
दूसरा आर्त्तध्यान- किसी मनोज्ञ या इष्ट पदार्थ के वियोग होने पर उसके संयोग के लिये बार बार चितवन करना इष्ट वियोग आर्त्तध्यान कहलाता है ।