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जैन-दर्शन
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करने के लिये, तपश्चरण की वृद्धि के लिये और अतिचारों की शुद्धता के लिये किया जाता है । इसके पांच भेद हैं । यथा
वाचना - मोक्षमार्ग को प्रतिपादन करनेवाले निर्दोष ग्रंथों को पडना पढ़ाना, उनके अर्थ समझना या वतलाना या ग्रंथ अर्थ दोनों को पढना और योग्य पात्रों को पढाना वाचना है ।
पृच्छना - अपनी शंकाओं को दूर करने के लिये या अपने ज्ञानको दृढ बनाने के लिये या किसी ग्रंथका अर्थ जानने के लिये किसी अन्य विद्वान् से पूछना पृच्छना है ।
अनुप्रेक्षा - जाने हुए पदार्थों को या किसी ग्रंथ या उसके अर्थ को बार बार चितवन करना अनुप्रेक्षा है ।
आम्नाय - जो व्रती पुरुष इस लोक या परलोक की समस्त इच्छाओं से रहित हैं तथा अनेक शास्त्रों के जानकार हैं वे जो कुछ बार बार पाठ करते हैं, कंठस्थ करते हैं उसको आम्नाय नामका स्वाध्याय कहते हैं ।
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धर्मोपदेश - मिथ्यामार्ग को दूर करने के लिये, अनेक शंकाओं दूर करने के लिये या जाने हुए पदार्थों के स्वरूप को प्रकाशित करने के लिये जो धर्मकथाओं का कहना है उसको धर्मोपदेश कहते हैं। इस प्रकार संक्षेप से स्वाध्यायका स्वरूप है । आगे व्युत्सगं को कहते हैं |